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सच बोलना भी अब गुनाह सा लगता है
ना बोलो सच तो हम अच्छे बन जाते है
और जो बोल दिया हमने सच तो बुरे हो जाते है
जिंदगी की उलझनों में यूं उलझ जाते हैं
रिश्तों तो बनाए रखने में ना जाने हम
कितने ही झूठ बोल जाते है...।
गलत कहते हैं लोग कि कभी हम झूठ नहीं बोलते
फिर क्यों खुद को बचाने एक और झूठ बोल जाते.
हा! बोलो झूठ कोई बुराई नहीं है पर हर बार झूठ
बोल कर अच्छे बन जाओ ये भी तो सही नहीं है।।
झूठ बोल कर हम कुछ देर तो महान बन जाते हैं
कुछ क्षण बाद ही खुदकी नज़रों में गिर जाते हैं।
ये एहसास भी ना जाने कितनो को होता होगा
जो अपनी गलतियों पर पछता जाते हैं..
भूल अपनी सही कर सबक दे जाते हैं
हां वे ही अच्छे इंसान कहलाते हैं....।।-
कभी सवाल उठा होगा समाज के नीतिवानों के बीच के नैतिक-अनैतिक, अच्छे-बुरे आदमी का निर्णय कैसे किया जाए? वे परेशान होंगे। बहुत सी बातों पर आदमी के बारे में विचार करना पड़ता है, तब निर्णय होता है। तब उन्होंने कहा होगा - ज्यादा झंझट में मत पड़ो। मामला सरल कर लो। सारी नैतिकता को समेटकर टाँगों के बीच में रख लो।
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देखा है मैंने कोरोना महामारी में..
सहारा तो दूर कसर न छोड़ी तमाशा बनाने में,
ना जाने किस मुँह से चले आते हैं लोग यहाँ;
खुशियों को देख मिठाई खाने..!!-
जीवन में स्वयं के कुछ सिद्धांत ज़रूरी
हैं ,कुछ नैतिकता
होनी चाहिए ।
उसके बाद चाहे उनपर चलकर हार हो
या जीत हो .. कोई फ़र्क नहीं !!-
नैतिक और अनैतिक का निर्धारण कौन करता है?
परिस्थितियाँ या स्वयं हमारे समक्ष दृश्य...
कई बार जो दृश्य हमारे सामने होते है वो हमारे दृष्टिकोण से अनैतिक लगते है पर क्या सच मे होते है
वो अनैतिक? ये प्रश्न विस्तृत है |
जैसे एक अनब्याही का गर्भ धारण शायद हमें अनैतिक
लग सकता है पर क्या उसका किसी की प्रति प्रेम मे समर्पण अनैतिक था?
या एक विवाहित का किसी परपुरुष /परस्त्री से प्रेम संबंध हमें अनैतिक लग सकता है पर क्यों विवाह उपरांत प्रेम पाप है?
एक अधेड़ उम्र व्यक्ति का कम आयु से प्रेम क्यों वासना की श्रेणी मे रख लेते है हम?
क्यों नहीं सहन कर पाते हम किसी की अश्विकारिता को? किसी के शिष्ट व्यवहार को प्रेम कैसे मान लेते है और अवेहलना को अहं का प्रश्न क्यों समझ लेते है?
शायद जो हमें अनैतिक लगे जरुरी तो नहीं वो अनैतिक हो ही.....
या जो वास्तव मे नैतिक है वो सदैव अनैतिक की परिधि से बाहर आया ही नहीं |
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नैतिकता का पाठ पढ़ाकर
भ्रष्टाचारियों को भगाकर,
सत्ता में देशभक्त आ जाएं
आओ ऐसी कट्टरता अपनाए।
बेइमानो से देश बचाकर
पापियों को धूल चटाकर
भ्रष्टता को दूर भगाए
दुष्टों के प्रति कट्टरता अपनाए।
जातिवाद का भूत भगाकर
आडम्बर पाखंड हटाकर,
कंधे से कन्धा मिलाए
हम सब उदारता अपनाएं।
धर्मांधता कटुता मिटाकर
सबको अपने गले लगाकर,
सारे गिले-सिकवे भुलाए
आओ ऐसी कट्टरता अपनाए।
हम बदलेंगे देश बदलेगा
भारत नई तकदीर लिखेगा,
स्वर्ग से सुन्दर देश बनाए
आओ मिलकर देश बचाएं।
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ग़र इंसान की नैतिकता खत्म होने लगे ना साहब,
तो इन्सान से पहले वो समाज मर जाता है..-