वह तप रहा है ,
भरी दुपहरी में ..
प्राणों के खेतों में ..
पेट को दबाये हुए है पीठ से ,
प्यासा है कई घंटों से ,
लेकिन मांगता नहीं है तिनका भी किसी से ,
जग के प्राणों को सींचता है खून से ,
तन निचोड़ कर सुखा देता है धूप में,
खून का पानी बना देता है श्रम में ,
लेकिन मांगता नहीं तिनका भी किसी से ,
सरकारें योजना लाती हैं काग़ज़ी ,
#प्राणों का सृजक छोड़ देता है #प्राणों को ,
कितना दुर्भाग्य है इस देश का ,
विकास भी होता है विकसित लोगों का ।
#प्राण - अन्न , #प्राण -जीवन , प्राण
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