वह तप रहा है ,
भरी दुपहरी में ..
प्राणों के खेतों में ..
पेट को दबाये हुए है पीठ से ,
प्यासा है कई घंटों से ,
लेकिन मांगता नहीं है तिनका भी किसी से ,
जग के प्राणों को सींचता है खून से ,
तन निचोड़ कर सुखा देता है धूप में,
खून का पानी बना देता है श्रम में ,
लेकिन मांगता नहीं तिनका भी किसी से ,
सरकारें योजना लाती हैं काग़ज़ी ,
#प्राणों का सृजक छोड़ देता है #प्राणों को ,
कितना दुर्भाग्य है इस देश का ,
विकास भी होता है विकसित लोगों का ।
#प्राण - अन्न , #प्राण -जीवन , प्राण-
और फिर उसको दिल की गहराइयों मे उतारने को
मन होता है उसको वो हर दृश्य दिखाने को
जो मेरे दिन रात तक मेरे साथ चलते है
वो तारे भी जो आसमान से गिरते है
वो पानी की बारिश भी जो धरती से ही उछलती है
वो मेरा भिगा मन और गीला बदन
वो मेरा धूप में तन और शुष्क मन
वो बोझिल सा बस्ता
वो छाप छोडता रस्ता
वो पतली सी गलियाँ
वो मन्दिर की घंटियाँ
जब श्याम छोड जाती है
और जब रात आ जाती है
जब बात बात पे मुझे तेरी याद आती है
जब तुझे मेरा सगा हर हवा कहके जाती है
नाजुक सी गांठ मगर मजबूत रिशते की
पनाह में सर रखके जो हर रात सो जाती है
तो जिन्दगी मानो कुछ खास हो जाती है
-
ये ईंटें ही मेरी तखती है, और हथोडा ही है मेरी क़लम ।
तोड़ते हुए अगर चोट लगे तो, मिट्टी को बना लेता हूँ मलहम।
भूख ही मेरी कक्षा है, और रोटी है पुरस्कार मेरा।
सपना ये है इतना कमा लूँ, कि पेट भर खा ले परिवार मेरा।-
दृश्य बोल रहा है परिदृश्य की खामोशी
बेचारे रौंदे जा रहे हैं दिलो की खामोशी
खून और पसीना एक साथ बह रहा है
बिना दिल के इंसान बस यंत्रवत चल रहा है
इंसान छेनी-हथौड़ा से घर बना रहे है
दिलो में घर थे जिनके वो उजड़ रहे है
स्वप्न में भी विनाश और ध्वंस की रचना
दिल ही नहीं है तो सृजन होना नही बनता
इंसान तो बस अब सिक्के बना रहा है
दिल के चलन का रिवाज तो बाहर हो रहा है-
ये सोख गज़ल ना कह मुझ पर,
मेरे चेहरे पर उनका चेहरा है,
मेरे दिल पर दस्तक क्यों देता है,
मेरी आखो पर पेहरा सिर्फ उनका है।-
किस दर्जा,कितनी सदियों से तनहा होगा वो
मुझसे कहा जब दिल ने देखा टूटते तारे को-
जबसे उसने दृश्य का सहारा लेना चाहा
उसके जादुई शब्द अदृश्य होने लगे-
सहेज कर रखे हैं
तेरे साथ देखे हुए
वो दृश्य..☘️
तेरे साथ बिताए हुए
वो पल ..☘️
तेरे साथ ली गई
वो तस्वीर..☘️
तेरे साथ मूक संवाद
वो अनकहे शब्द..☘️
तेरे साथ गुनगुनाए गीत
वो गुंजन..☘️
तेरे साथ आत्मीयता
वो स्पर्श....☘️
कभी-कभी यह
परकटे पंछी से फड़फड़ाते है
मन में फिर कुछ धड़कता है💗
और मुझे तब लगता है
मैं फिर से जिंदा हो गई हूं❤️-
मैंने देखा उडते वो पंछी खुश थे बेहद।
गगन में उड़ते वो ना रोके उन्हें कोई सरहद।
हम भी पंछी होते तो उडकर सरहद के पार जाते और खुश होते बेहद।
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दृश्य अदृश्य भाव माझे,
क्षितीजावरती नाव माझे.
निष्पाप हृदय डोळ्यांना,
दिसते ते सुंदर ठाव माझे.-