जुनूनियत है मंज़िल पाने की तो बनी ही रहने दो,
ना दो मुझे जमीं पर जगह हवा में उड़ने दो,
थक जाएँगे जब पंख मेरे तो नीड़ ख़ुद ब ख़ुद ही मिल जाएगी,
आसमाँ की चादर को मुझे मेरे पंखो में समेटने दो।
ज़रा ...देखे सरहद के उसपार क्या है... हम भी जाकर ,
कोई आवारा पंछी कहे हमें तो आवारा ही कहने दो।
-