पीयूष मिश्रा   (Piyush Mishra)
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यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016


यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016

और उस दिन गाँव के लोग, मिटटी, फूल, तालाब, खाली ज़मीन, खाली वक़्त, सब बहुत याद आ गया था। एक झटके से लगी चोट की तरह झटके से आयी याद भी, कई रग झन्ना देती है

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बातों में अपनी तू बता बातें छुपा रहा है क्या
क्या है जो दिल के तेरे अंदर ही अंदर चल रहा
ये छुपाना मन पे तेरे बन के काजल जम रहा
सोच मत, ना ही डर
बात कर

देख ना बातों से तेरी खनखनाहट खो गई
है हँसी चेहरे पे पर वो खिलखिलाहट खो गई
क्या तेरे मन को अंधेरे की तरह है डस गया
सोच मत, ना ही डर
बात कर

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जाने कितनी ही इच्छाएँ
दफ़्न हो गयीं मन के अंदर
और उदासी की इक कोंपल
उग आयी है उसके ऊपर

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इंद्रधनुष के सारे रंग मिला कर उसने
मुझे दिखाया सादा दिल ऐसा होता है

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पेड़ काटें
कागज़ बनाएँ
फिर उन पर लिख कर चिपकाएँ-
'चलो पर्यावरण बचाएँ'

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तुम ढूंढोगे मुझको और मिल ना पाओगे
मैं चाँद के पीछे की बस्ती का अंधेरा हूँ

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.....

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तब इश्क़ था अब इल्ज़ाम है!

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आओ कर लें आधा-आधा
रातें-वातें
चंदा-वंदा
तारे-वारे
सपने-वपने
चिट्ठी-विट्ठी
हँसना-वँसना
रोना-वोना
शामें-वामें
हाथ-वाथ को थाम-वाम कर
की गई सारी बातें-वातें
झूठी-सच्ची सभी शिकायत
कभी नहीं बिछड़ने का वो
किया गया एक झूठा वादा
आओ कर लें आधा-आधा!

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मौत जुड़वा है ज़िन्दगी की

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