और उस दिन गाँव के लोग, मिटटी, फूल, तालाब, खाली ज़मीन, खाली वक़्त, सब बहुत याद आ गया था। एक झटके से लगी चोट की तरह झटके से आयी याद भी, कई रग झन्ना देती है
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बातों में अपनी तू बता बातें छुपा रहा है क्या
क्या है जो दिल के तेरे अंदर ही अंदर चल रहा
ये छुपाना मन पे तेरे बन के काजल जम रहा
सोच मत, ना ही डर
बात कर
देख ना बातों से तेरी खनखनाहट खो गई
है हँसी चेहरे पे पर वो खिलखिलाहट खो गई
क्या तेरे मन को अंधेरे की तरह है डस गया
सोच मत, ना ही डर
बात कर-
जाने कितनी ही इच्छाएँ
दफ़्न हो गयीं मन के अंदर
और उदासी की इक कोंपल
उग आयी है उसके ऊपर-
इंद्रधनुष के सारे रंग मिला कर उसने
मुझे दिखाया सादा दिल ऐसा होता है-
कुछ ऐसे मुझसे वो मिल रही है
कि जैसे मुझको भुला चुकी है
ये दिल है कोई हवेली जिसकी
चमक-दमक में वीरानगी है-
सुनो लड़की!
क्या अब भी डायरी में छिपा कर फूल रखती हो?
चलती राह आ जाए कोई पीपल तो सर को ढँकती हो?
कोई बच्चा जो दिख जाए मांगता भीख सड़कों पर तो रिक्शे से उतर जाती हो क्या?
लगा कर हेडफोन कानों पर अब भी गीत गाती हो क्या?
तुम्हारी रात का सपना कोई सुनता है तुमसे अब?
जो रोती हो कभी तुम तो कोई अब गुदगुदाता है?
कोई लिखता है ख़त तुमको बहुत तुम याद आती हो?
मैं तुमको याद हूँ क्या लड़की?-
एक बच्चा मुस्कुराता था
बाबूजी की आँखों में
जब बातें करते थे वो
अपने बाबूजी की
बाबूजी को याद करके ये लिखते हुए
मैं यहाँ नीचे अपना नाम नहीं
अपनी आँखें रख देना चाहता हूँ-