पीयूष मिश्रा   (Piyush Mishra)
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यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016


यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016

और उस दिन गाँव के लोग, मिटटी, फूल, तालाब, खाली ज़मीन, खाली वक़्त, सब बहुत याद आ गया था। एक झटके से लगी चोट की तरह झटके से आयी याद भी, कई रग झन्ना देती है

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पेड़ काटें
कागज़ बनाएँ
फिर उन पर लिख कर चिपकाएँ-
'चलो पर्यावरण बचाएँ'

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तुम ढूंढोगे मुझको और मिल ना पाओगे
मैं चाँद के पीछे की बस्ती का अंधेरा हूँ

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.....

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तब इश्क़ था अब इल्ज़ाम है!

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मौत जुड़वा है ज़िन्दगी की

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(ग़ालिब के जन्मदिन पर ग़ालिब से माफ़ी सहित)

काम ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे इश्क़ के

Happy Birthday Ghalib

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शेर हमेशा यही चाहेगा कि जंगल राज बना रहे

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स्वेटर की तरह बुना था जो रिश्ता
कहीं उसका धागा एक छूटा हुआ है

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Main jo chala tha ghar se
Tumne potli mein ek
Diya tha zara sa kuchh,
Kaha tha-
"bhookh lage to kha lena"

Wo potli
Ab bhi yun hi padi hai...

Tumse door hoon na maa
Bhookh nahin lagti!

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