अपना दर्द जिस कोरे कागज़ पर लिखता था
दुश्मनों में अख़बार बन कर बिकता था
जिसे सिखाता दोस्ती के मायने मैं
दोस्त वो दो चार महीने ही टिकता था-
चेहरे जो समझ सके ऐसे 'दोस्त' चाहते हैं,
वरना खूबसूरत तो हमारे 'दुश्मन' भी दिखाई आते हैं।-
खूबसूरत चाहत है मेरे दुश्मनो की,कि मैं चमकदार हो जाऊं
ज़मीं का ना रहूँ, आसमाँ का तारा हो जाऊं-
हमारी भी क़िस्मत में एक बवाल हुआ है
तुम न समझोगे, मेरा क्या हाल हुआ है
जब से गए हो यार, ऐसा कमाल हुआ है
गमों से मेरा खजाना, मालामाल हुआ है-
बहुत भटका अबतलक प्यासा कुएँ की ज़ुस्तज़ु में
अबके कुएँ को प्यासे का.. इंतज़ार करने दो,
मुहब्बत में अग़र डूबना है तो कूद जाओ बेशक़ मग़र
पऱ फ़िलहाल.. इस समुंदर को.. पहले उसे पार करने दो,
रानी औऱ दास की मुहब्बत का अंजाम क्या होगा
मरने को मैं हूँ तैयार.. बस उसे जीभर के प्यार करने दो,
कौन मेरा दुश्मन है यह पता तो चले अहल-ए-दिल
खंज़र लिये खड़े हैं.. बहुत यार.. बस उन्हें वार करने दो,
वो कहे तो जान भी हाज़िर है हजरत के कदमों में
पऱ पहले मुझे अपनी हुक़ूमत पे.. एतबार करने दो!!-
Brother's Day
नियत साफ़ है तो सारे दोस्त भाई ,
नियत में खौट तो सगा भाई भी दुश्मन।-
इल्तिजा है कि जब जनाज़ा मिरा उठाया जाए
किसी भी दोस्त को हाथ ना लगाने दिया जाए!
खुश होंगे दिल ही दिल में पहन कर आंसुओ का नक़ाब
हंसी छिपानी नहीं है इनको ये ऐलान कराया जाए!
ताजपोशी की जाए इनकी पूरे इन्तेज़ाम से
इन्हें सारे फ़रेबियों का मुखिया बनाया जाए!
इन्तेज़ाम हों सारे जश्न के इनके लिये
सारे दग़ाबाज़ों से इन्हें सजदा कराया जाए!
मुझे दफ़न करने से पहले फातिहा पढ़ने से पहले
इनके क़िरदार से इन्हें रूबरू ज़रूर कराया जाए!
करने लगे कोई किसी दोस्त पर खुद से ज्यादा यकीन
उसको फिर इक बार किस्सा-ए-शालीन सुनाया जाए!-
हम कभी भी अपने दुश्मनों पर आगे या पीछे से वार नहीं करते।
हम अपने दुश्मनों के दिल और दिमाग पर वार कर उनके सोच को ही बदल देते हैं।-
अपनों ने दिल का सुकून छीनकर
होंठों पे बेबसी का जाम दे दिया,
खता थी बहारों की फिर भी मगर
खिजां को खताबार का नाम दे दिया।
कभी हुआ करता था दिल ये गुलिस्तां
शोख हॅंसी के कंवल खिलते थे ,
पर अपनों ने इस चमन को लूटकर
ऑंखों में अश्कों का पैगाम दे दिया।
रातों को बुनते थे हसीं ख्वाब हम
चाहतों के आसमां में उड़ती थी ख्वाहिशें,
पर ठोकर जमाने की ऐसी लगी
कि दिल में बरबादियों का इंतजाम दे दिया।
बरसकर के थक गई हैं अब्सार हमारी
और राहतें भी दिल से जुदा हो गई हैं,
इसी सोच में तड़पते हैं रात-दिन
क्यूं दुश्मन को हमनवां का एहतराम दे दिया।
......... निशि..🍁🍁
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दुश्मन भी अब इस तरह दुश्मनी निभाता है
दिल घायल करता है,तेरी ही बातें सुनाता है।-