मेरी चाहत का आलम माहीं, इस क़दर हैं आज भी
उसकी ख़ुशी के लिए, दरगाह में बांधते धागे आज भी
वो दूर है तो क्या हुआ...
वो मेरे ना हुए तो क्या हुआ...
हम चाहते है उन्हें आज भी.....!
किस्मत ने छिन लिया प्रेम मेरा तो क्या हुआ,
फ़िर भी दिल में रहते हैं, वो आज भी
यूं तो ज़रूरी नहीं....
मोहब्बत में पाया जाए साथ उम्र भर का,
उनकी यादें तो साथ रहती है आज भी
ये खुदा उनको आगे बढ़ने की ताकत देना,
सुना वो हम पर हीं मरते हैं आज भी।-
चुनरी चढ़े तो देवी की
चादर चढ़े तो मौला की
क्या खूब धर्मो की कहानी हैं
लाल चुनरी मंदिर में
तो हरी चादर दरगाह पर
चढ़ानी हैं।-
ये परवरिश का फर्क है साहेब ,
हम दरगह पे जाते हुए भक्तो पे फूल बरसते है ।
ओर वो अमरनाथ जाने वालों पे गोलियां ।
हम दरगाह पे चादर चढ़ाते है ,
ओर वो हम पे कफन ।
-
वो मंदिर भी जाएगा, वो दरगाह भी जाएगा,
खुद को खुदा मानने वाला, उसको रिझाएगा,
ये कुर्सी की लालच, पद का लोभ है 'कुमार',
आज झुकने वाला नेता कल सबको झुकाएगा!
-
कहते हैं छोड़ जायेंगे तुम्हें, पर कहते-कहते रुक जाते हैं,
तेरे अधरों की दरगाह पर मेरे होंठ अदब से झुक जाते हैं-
दरगाह तुम जाते नही,
मंदिर में सिर झुकाते नही,
फिर कौन सा धागा है मन्नत का
जो गांठ तुमने बाँधा था
वो आज़तक खुलता नही....
-
ज़िन्दगी में उलझनें हैं उलझनों में राह है
जान ही लेती है रस्ता जीने की जो चाह है
वक़्त चलता, सांस चलती और चलती ये ज़मीं
बस खड़ी रहती है इक जो मौत की दरगाह है
-