मैं हीरे की खामियाँ गिनाता रहा।
लोग मुझे जौहरी समझते रहे।-
जौहरी रोज़ तराशता हूँ ख़ुद को फिर भी
एक ही कोना तराशा गया है इस उम्र तक-
मुझे यूं ना परख
ना मैं हीरा ना तू जौहरी
ना मैं बिकने वाला
ना तू लगा पाएगी मेरी बोली-
सुख हो चाहे दुःख तूने मुझे सब दिया
बिना बताए, कभी भी मुझे परख लिया
तेरे जुल्म-ओ-सितम पर मुझे नहीं कोई गिला
बस अफसोस इस बात का जौहरी
कि तुझे अब तक हीरा नहीं मिला-
मैं जिन्दगी की हकीकतों का जौहरी हूँ जनाब...
किस्सों और कहानियों पर ऎतबार नहीं करता...-
जब तक पहुंचे जौहरी तक,
कहीं ये हीरा पत्थर ना हो जाए,
ए खुदा तू बता, क्या सच बोलूं ?
कहीं ये जुबान कड़वी ना हो जाए।...-
रेशम सी हवाएँ,
मख़मल से बादल,
चाँदी सी बिजली,
मोती सी बूंदें...
मौसम मानो मौसम नहीं,
कोई जौहरी की दुकान हो गया है...-
बहुत आये जौहरी हीरा खोजने
उन्हें पत्थर मिला न कोई
फिर आया कोई पत्थर खोजने
मुझे हीरा समझ लिया वोई।-
वो तारीफ़ कुछ इस कदर किया करते
की हीरे की परख जौहरी को होती हैं
पर हमे ये समझ नहीं आया
जौहरी हम थे या वो.....?
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