कभी खुशी तो
कभी गम मिला हैं
यूं ही बदनाम होते है लोग
सब ईश्वर ही करवाता हैं
सब उसकी ही लीला हैं-
इसमें उसकी क्या गलती हैं
ये तो दौर ही ऐसा है साहब
यहां सच्चा प्यार करनेवालों की कहां चलती हैं-
मैं जानती हूं
मैं अपने तज़ुर्बे से इंसान पहचानती हूं
हर बात पर हल्ला करना तो मूर्खो का काम हैं
मैं खामोशी में अपनी परिपक्वता मानती हूं
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आश्वासन देकर क्यों
जनता को बेवकूफ बना रहे हो
कुर्सी के लिए तुम नेता अब क्या
नए पैंतरे आजमा रहे हो
वोट मांगने से पहले सोच लेना अबकी बार
ये "अच्छे दिन आएंगे" का लॉलीपॉप दिखा कर
अब तक बस महंगाई ही तो बढ़ा रहे हो
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हम ना भी दिखाएं फिर भी नज़र आता हैं
ये दर्द है जनाब कहां छुप पाता हैं
कोशिशे तो बहुत की हमने इसे छुपाने की
पर ये कमबख्त आंखो से बह जाता हैं....-
अकेले ही खुश हैं ये कह हमने
इश्क़ से मुंह मोड़ लिया
किसी को क्या पता जिससे इश्क़ किया
उसने ही तन्हा छोड़ दिया
क्या बताए ये वजह एक एक शख्स को अब
इसलिए हमने दुनिया से ही नाता तोड़ लिया.....-
मुझे कि तुम मेरे जीवन से चले गए
वरन् इस बात का है कि तुम याद बहुत आते हो.....-
जज़्बात
आज दीपावली की सफाई करते हुए ,मां के लिखावट से भरे कुछ पन्ने मिले उनपर भी धूल जम गई थी, मैं उन्हें दोहराने लगी एक एक अक्षर मुझे धुंधला नज़र आ रहा था लगा मां से फिर मिल रही हूं जो मोती आंखो में थे वो पन्नों पर गिर गए और स्याही फेल गई और मैने झट से उन पन्नों को सहज के फिर रख लिया,सफाई तो अक्सर हम घर की करते है पर कुछ यादों को जानबूझकर सहज के रख लेते है अलमारी में बन्द करके क्योंकि हर दिन उनका सामना करना इतना आसान नहीं ,दीपावली में सिर्फ मकान ही साफ हो ऐसा नहीं है, यद्यपि सफाई के बहाने ही सही पर कभी कभी दिल भी धुलना जरूरी है....-
ये सबको बता के क्या करूं
जिसका हैं उसको भी जता के क्या करूं
गर टूटे तो दर्द लाज़िम हैं
फिर बेवजह खुद को सता के क्या करूं??
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