मशरूफ खुद को इतना कर,
के नामुराद सवाल ना आए,,
मेहनत अपने बाजुओं से हो,
किसी के कंधों पर निशान ना आए...🍂
कमबख्त आसमान सबका है,
जो ना डूबे,
बेगैरत रात कभी ना आए।...🍂-
कि सुकून - ए - बिस्तर पर तशरीफ घिस रहा हूं,
कोरोना का इतना कहर है,
कि चादर के संघ थोड़ा - थोड़ा खिसक रहा हूं।...-
यूं ही गुजर गए ये एहसासों भरे पल ,
पता ही नहीं चला,
की तेरा हाथ थामें एक बरस हो गया।...-
थोड़ा रुक से गए हैं कदम,
हालातों के चलते,
मंजिल का रास्ता अभी भूला नहीं है।
दोनों हाथों में है आसमान ,
वो खुदा अभी रूठा नहीं है।।
जी भर मजबूत है इरादे,
वो अभी कहीं से टूटा नहीं है।...-
ज्यादा की ख्वाहिश नहीं,
और थोड़ा जचता नहीं,,
गला दबोच कर बैठा है वक़्त,
ख़ामोश हूं पर डरता नहीं।...-
कि वक्त ने करवटें बदल ही ली आखिर,
माथे की सिलवटें बदल ही दी आखिर,
और,,,,
खुले हाथों से स्वागत था तेरा ए जिंदगी,
ले आज मैंने बेड़िया पहन ही ली आखिर...-
कि याद आ गया आज फिर वो शख्स,
जो बेपरवाह इश्क़ किया करता था,
थाम लेता था वो हाथ,
बिना फरेब के,
ना जाने कौन- कौन सी रश्मे किया करता था।
हां छोड़ा था उसने हाथ,
चुपचाप दुआएं किया करता था,
याद आ गया आज फिर वह शख्स.......-
नए रिश्तों के चक्कर में,
पुराने छोड़ आया है,
वो इंसान है,
बिन बांधे कश्ती किनारे छोड़ आया है।
समंदर अपने उफान पर है,
कमबख्त किनारों से इतना टकराया
कि दरारे छोड़ आया है।...-
मयखाने तक पहुंचे क्या,
टूटे कुछ टुकड़े लेकर,,
चंद घूंट हलक से उतरी क्या,
सब पन्ने बन गए।....-
ये मदहोशी, ये शुरूर,
बस मयखाने तक रहने दो,,
इश्क़ है, "मुझसे" खूब करो,
बस अपने दिल के दरवाजे तक रहने दो,,
"इश्क़" ये तो रोग है,
मेरे खुदा इसे जमाने तक रहने दो।...
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