घर से बेघर था क्या करता, दुनिया का डर था क्या करता?
जर्जर कश्ती, टूटे चप्पू, चंचल सागर था, तो क्या करता?
सच कहकर मैं पछताया, खोया आदर था, क्या करता?
ठूंठ कहा सबने मुझको, पतझड़ मौसम था, क्या करता?
खुद से भी तो ना छुप सका, चर्चा घर घर था, क्या करता?
आखिर दिल दे ही बैठा, कसूर दिल का था, क्या करता?
मेरा जीना मेरा मरना, मैं था तुम पर निर्भर, क्या करता?
सारी उम्र पड़ा पछताना, भटका पलभर था, क्या करता?
बादल, बिजली, बरखा, पानी, टूटा छप्पर था, क्या करता?
सब कुछ छोड़ चला आया मैं, रहना दूभर था, क्या करता?
मिलना जुलना तब से था, जाना पहचाना था, क्या करता?
चक्करघिन्नी, लट्टू बन के, खुद को भरमाया क्या करता?
था अकेला, रहा अकेला, दर-दर भटका था, क्या करता? _राज सोनी
थक, लूट, वापस लौटा, घर आखिर घर था क्या करता?-
25 JUN 2020 AT 8:09
25 NOV 2022 AT 18:28
सपना सा लगता पल भर का
बीत जाते है दिन–रात
और पता नही चलता वक्त का
बदल जाते है हालात-
4 JUL 2020 AT 0:35
किसी को जाने के लिए एक पल ही काफी हैं
पर
किसी को पहचानने में सदियां गुज़र जाती हैं....-
10 JUN 2019 AT 20:29
उनका दावा है वो अच्छे से जानते हैं हमें
क्या बताएँ हम ख़ुद नहीं पहचानते हैं हमें-
20 SEP 2020 AT 11:17
मिल तो रहे हैं हम मगर गुमनाम रहने दो
जान पहचान बढ़ी तो दोस्ती,दुश्मनी का ख़तरा हैं!!!!-
10 OCT 2022 AT 8:23
कभी बताया नहीं अपने बारे में उसे
फिर भी वो मुझे जानने लगी है-
15 NOV 2024 AT 6:57
रिश्ते हमेशा अनजान ही होते हैं साहेब,
पर जब वो किसी से मिलते हैं,
तो जान पहचान में तब्दील हो जाते हैं।-