आएँगी पथ में बाधाएँ, छाएँगी प्रलय की घोर घटाएँ !
आग बनकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा !
क्योंकि मैं हूँ नीली,गबरीली चिड़िया, जिसे नदी से बहुत प्यार है !
जो नदी का दिल टटोल कर,चोंच मारकर, जल का
मोती ले जाती है !
और अपने कर्तव्य पथ पर फिर अग्रसर हो जाती है !
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एक दिन चिड़िया उड़ गई
जब अपनो ने ठुकरा दिया
गैरो ने अपना लिया.....
जब ज़िन्दगी का हर दरवाज़ा बन्द
हो गया तब चिड़िया उड़ गई.
बड़ी चाहत थी उसमें आसमान को छूने की
बहुत उम्मीदें थी अपनी कोशिशो पर
उसकी रोते हुए सिसकती हुई आहें
किसी ने ना सुनी.....
तब चिड़िया उड़ गई........
घर मानो जेल लगने लगा था
रोज तिल तिल मरती थी वो
देख कर अपने सपनो को रौंदता
सह न पाई ये सब.......
मौका देख पिंजरे का दरवाजा खोल वो उड़ गई
एक दिन चिड़िया उड़ ही गई..........
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खेतों में फसल नहीं है
किसान आंदोलन का अब तक कोई हल नहीं है
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Iss Garma(Summer) ke mausam meiñ hamare liye chatt par Daana Paani rakheñ
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मुझे भी जीने दे
मत बंद कर मुझे किसी पिंजरे मे
मुझे भी खुली आसमान मे उड़ने दे.....!!-
मेरी पीड़ा सह रही थी
दिल से दिल का तार जोड़ रही थी
वक़्त की दरिया को मोड़ रही थी
प्यार न करना मुझसे, ओ हमदम
ये कहकर आसमानों में उड़ रही थी
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उड़ने की तुम चाह रखो,
और वजन सहेजे जाते हो,
ख्वाहिशों के जंजाल में उलझे,
और आनंद खोजते जाते हो।
संतुष्टि का आकाश है पाना,
तो सुनो चिड़िया क्या कहती है,
तोड़ के बंधन गगन को चूमो,
खुशी इसी में रहती है।
गुरमीत
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किसी घने पेड़ की डाल में,
मैं आशियाना अपना बना लूँगी,
कि गर्मी की इस कड़ी धूप में,
तुम छत की मुँडेर पर अपनी,
मुझे पानी ठंडा रख देना!!-