फूल, सावन, हवा सी लड़कियां,
बरसात की सौंधी फुहारों सी लड़कियां!
जो ब्याहके हो जाती हैं, थोड़ी सी बहुत दूर,
पीहर में, गुलाब की खुशबू छोड़ आने वाली लड़कियां!
ये वहीं हैं, जो कभी अलमस्त सी अंगड़ाई ले, सोया करती थीं,
’ज़रा देर तक’,
अब पूरे घर का होश संभालने निकली हैं,
"अनिश्चिता लिए,
अपने गंतव्य तक जाने को,
जो पिता के यहां, अधूरा माना जाता रहा है शायद!?
"सदियों से...
शुभी पाराशर
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