तारीफ़ करूँ तो भक्त कहलाऊँ, न करूँ तो चमचा
अपना अपना मफ़लर सबका, अपना अपना गमछा-
।। कोई चमचा कहता है ।।
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कोई चमचा कहता है, कोई भक्त समझता है!
देश का युवा जब मांग, रोजगार की करता है!!
बेरोजगारी और महंगाई में घर कैसे सम्हलता है!
ये तो बस मैं समझता हूँ, कि ये तो बस तू समझता है!!
राजनीति इस भारत की, एक ऐसी कहानी है!
कभी पानी को तरसाये, तो कभी पानी ही पानी है!!
यहाँ सब लोग कहते हैं, कि तेरा वाद दीवानी है!
जो जेब भर दी जाए, तो फौजदारी भी दीवानी है!!
मेरी ही जमीं पर बैठे हैं, लब सिले है कि कह नही सकता!
अब कितना भी कर लो तुम, मैं अन्याय सह नही सकता!!
आज खड़े हो जाओ तुम, सब छोड़कर ये राजनीतिक दिवानगी!
समझ जाओ नेता देश का न हुआ, वो तेरा हो नही सकता!!-
हिंदू मुस्लिम करते करते
आग लगा दी बस्ती में
नेता जी के चमचे थे सब
झूम रहे थे मस्ती में ....-
बहुमत तियमत बालमत बिन नरेश को राज
सुख सम्पदा की कौन कहे, प्राण बचावन बड़ भाग-
तू पढ़ा लिखा चमचा
मैं मोदीभक्त गंवार प्रिये..
तू गुलाम है एक खानदान का
मैं 'आत्मनिर्भर' चौकीदार प्रिये..-
चम्मच हमारे रसोईघर के बर्तनों में अहम भूमिका निभाता है। चम्मच भी कई प्रकार के होते हैं लेकिन यहाँ सिर्फ दो प्रकार का ही जिक्र करुँगी। छोटे और बड़े चम्मच....ज्यादातर छोटे चम्मच को हम कोई खाद्य सामग्री या भोजन अपने मुँह तक पहुँचाने के लिए प्रयोग करते हैं....हाँ हाँ वही जिसके लिए पहले अपने कर कमलों का प्रयोग करते थे। और बड़े चम्मचों का प्रयोग ज्यादातर खाद्य सामग्री को बड़े बर्तनों से छोटे बर्तनों में या परोसने के लिए किया जाता है।
तो हम रसोईघर में प्रयोग होने वाले चम्मचों की बात कर रहे थे। लेकिन आजकल अपनी वर्तनी में थोड़ा सुधारकर थोड़ा रूप बदलकर ये चम्मच यानी चमचा रसोईघर के शुद्ध वातावरण से निकलकर पूरी सृष्टि के unhygienic वातावरण में विचरण कर रहा है। ज्यादातर रसूख वाले नेताओं के लिए ये श्रृंगार के मानिंद होते हैं। लेकिन रसोईघर से इतर इनका प्रयोग बिल्कुल उल्टा है यानी छोटे चमचे और बड़े चमचों के मामले में। छोटे चमचे थोड़ा दूर और बड़े चमचे ज्यादा पास तक पहुँच रखते हैं लेकिन दोनों ही जरूरी है....बिना चमचों के नेता कैसा।-
किसी भी राजनीतिक दल या नेता के समर्थक बनो, लेकिन उसके भक्त या चमचा मत बनो।
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