Su'Neel Kumar   (नील (Neel_The_Poet))
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Joined 12 November 2019


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7 HOURS AGO

ख़त में जो लिखी थी वो मोहब्बत माँगता हूँ,
मेरी ज़िंदगी का नसीब वो उल्फ़त माँगता हूँ।

तुमने अदाओं का तफ़सील से ज़िक्र किया,
मैं तुम से कुछ लम्हों की मोहलत माँगता हूँ।

मेरे रब मुझे उसके दीदार में सुकूँ मिलता है,
दुनिया जहाँ के मसाईल से फुर्सत माँगता हूँ।

तुमने लिखा है तेरी जुल्फ़ों में रात ठहरी है,
मैं उस छाँव के तले थोड़ी राहत माँगता हूँ।

अब आज मौसम है फूल, कली, बहारों का,
मैं खुश्बू का साथ, इत्र की संगत माँगता हूँ।

तमन्ना बेताब है, मेरे हर जज़्बात में गुलाब है,
इन का इज़हार करने की इजाज़त माँगता हूँ।

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YESTERDAY AT 11:30

दिल की किताब में जब से ग़ुलाब रखा है,
मेरे दिल ने दिल में टुकड़ा ख़्वाब रखा है।

तू मेरी मोहब्बत पर असल में ही फ़िदा है,
तो बता क्यों ये लफ़्ज़ों का नक़ाब रखा है।

अब कुछ देर तुम भी परेशां हो कर देखो,
हमने दिल को इतने बरसों बेताब रखा है।

जहाँ से तुम ये ग़ज़ल समझना बंद करोगे,
वहीं पर तुम्हारे सवाल का ज़वाब रखा है।

इन आँखों को हमने तालीम ही ऐसी दी है,
कौन कहता है तेरे चेहरे पर शबाब रखा है।

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27 APR AT 23:59

जबसे नैनों ने सपने साजन के सजाए हैं,
चाँद और तारे मेरे ख़्यालों में लहराए हैं।

जब भी बातों बातों में उनकी बात छिड़ी,
ख़ुशी से झूमें हैं मगर लाज से शर्माए हैं।

तुम्हारी मोहब्बत की खुश्बू है ग़ज़ल में,
लफ़्ज़ दर लफ्ज़ मेरे जज़्बात महकाए हैं।

इन नज़रों ने आज आसमान को निहारा,
बुलंदियों के परिंदे हवाओं में लहराए हैं।

तेरी नरम जुल्फों को इक बार छू लिया,
हसरत के देखता हूँ तो पर निकल आए हैं।

मेरे चेहरे पर तेरा चेहरा बयाँ न हो जाये,
हम चुप होते होते हंसे और मुस्कुराए हैं।

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26 APR AT 6:12

एक मुलाकात के लिए ये बहाने बने हैं,
हम शरीफ़ थे और अब सयाने बने हैं।

हमें ये जग शोख हसीं नज़र आने लगा,
हम जब से मस्त पागल, दीवाने बने हैं।

जाने क्या नज़रों पर जादू चला उन का,
धूप के दामन पे क़ीमती नज़राने बने हैं।

मैं और मेरी तन्हाई तेरी और लौट आये,
मुसाफ़िर को सराय जैसे ठिकाने बने हैं।

ख़ुद खोया खोया, डूबा डूबा रहता हूँ मैं,
तेरी यादों और बातों में मयखाने बने हैं।

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21 APR AT 13:26

तेरे इश्क़ की खुश्बू ग़ुलाब में भी न मिलेगी,
शोखियाँ तेरे जैसी शबाब में भी न मिलेगी।

तेरे नज़दीक आकर ऐसा लगता है मुझको,
ये रंग, रूप, ताज़गी ख़्वाब में भी न मिलेगी।

मन में झिलमिलाती है तेरी झिलमिल सी,
ऐसी ठंडक कहीं माहताब में भी न मिलेगी।

झूठ कहते हैं सब मोहब्बत ग़ज़ल में होती है,
महजबीं शायरी तो किताब में भी न मिलेगी।

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16 APR AT 20:16

तुम्हें क़रीब से देखने की चाह रहती है,
उस ख़ुशनसीब घड़ी पे निगाह रहती है।

आजकल दिन जैसे भी गुज़रते हैं मेरे,
शाम मायूस होती है रात तबाह रहती है।

तुम को निहारना आहा से शुरू होता है,
तुम जाते हो तो होंठों पर आह रहती है।

एक दिल है वो भी खोया खोया सा है,
एक तबियत है जो बेघर गुमराह रहती है।

मेरी मोहब्बत में तो अमावस ठहर गई है,
ये पूर्णिमा तो हर महीने हर माह रहती है।

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15 APR AT 20:34

सारे साज़ सूने, ख़ामोशी ने आवाज़ लगाई है
दिल में कुछ चुभता सा है दूर तक तन्हाई है।

अपने जहान में अब हम ही अकेले हो चले,
किसी न याद किया न किसी की याद आई है।

हमें ये चाँदनी, ये, रौनक़ ये खुश्बू नहीं भाती,
न पूछ हम से क्या सच है कौन सी सच्चाई है।

जाने क्यों ये चैन से नहीं रहता, चैन नहीं लेता
किसी का कसूर नहीं मेरा दिल ही हरजाई है।

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15 APR AT 9:27

रोज़ खोल लेते हैं हम प्यार की खिड़की,
ठंडी हवा आये उस ऐतबार की खिड़की।

मेरे सनम को पसंद हैं ये रंगीनियाँ बहुत,
मैंने सजाई है लबो रुख़सार की खिड़की।

जब से तूने मेरे अंग को उमंग से छुआ है,
महकती है इत्र और महकार की खिड़की।

न जाने किस वक्त आ जाये मेरा हम दम,
झूमती रहे है आजकल बयार की खिड़की।

निगाह राह से पूछती है बेजान होकर मैं,
कब तक खुली रखूं इंतज़ार की खिड़की।

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14 APR AT 19:43

ज़माने को जो गुज़रे ज़माने लगते हैं,
हमें वो ही बीते दिन सुहाने लगते हैं।

आज गाँव की वो पगडण्डी देखता हूँ,
मेरे मन के खेत फिर लहराने लगते हैं।

चूल्हे पे बैठी माँ, माँ के हाथों में रोटी,
हम खाने को वो बर्तन लाने लगते हैं।

ममता है अनमोल पिता का क्या तौल,
आँसू सहारे हैं, आते हैं आने लगते हैं।

बीता कल, पल फिर लौट नहीं आता,
समझदार हैं मन को समझाने लगते हैं।

अम्मा बाबा की याद जब जब आती है
मेरे पैर बचपन की ओर जाने लगते हैं।

ये नयी फ़सल की ऐसी नयी आमद है,
ज़रा सी ताक़त मिले इतराने लगते हैं।

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14 APR AT 16:47

कोई सूरत नहीं के ये नज़ारा बेहतर लगे
दिल को सुकून मिले ये अपना शहर लगे।

चंद क़िताबें, चंद कागज़ात, रूठी क़लम
इसे मान लूँ मैं अपना गर ये मुझे घर लगे।

अब दोस्तों पर भी क्या राज़ ज़ाहिर करें,
जब उन्हें दिल की बात कहने से डर लगे।

दो पल में बदल जातें हैं इरादे ज़माने के,
क़ुदरत को बदलने में यहाँ कई पहर लगे।

वक़्त रहते ही मिल जाये जो मिलना हो,
बीते वक़्त अमृत मिले तो वो भी ज़हर लगे।

तू जिस तरह का हुस्न लेकर बाहर जाता है,
मुमकिन है तुझे के बदनज़र की नज़र लगे।

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