उसे है सुबह की चिंता उसे है शाम की चिंता,
घुली रहती है हरदम वो नही आराम की चिंता।
आने वाले हैं प्रियतम बना दूँ चाय मैं जल्दी,
बड़े ही थक के आते हैं उन्हे है काम की चिंता।
अकेली रह के घर मे भी कभी वो बोर ना होती,
सजा देती है कमरा सोच हंसी शाम की चिंता।
कभी अपनी चाहत को औरतें तरजीह ना देती,
सताती रहती उनको अपने घनश्याम की चिंता।
घर की दहलीज के बाहर कभी पांव नही धरती,
करती रहती मायके और निज ग्राम की चिंता।
यही नारी की' चिंता है , यही है सोचना उसका ,
करे कोई कभी उनकी थकी मुस्कान की चिंता !
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~घर में अकेली औरत~
कोई उससे ये नही पूछता
क्या तुझे भी कभी कोई
दर्द या तकलीफ होती है?
(In caption)-
हया से नाता जोड़कर
तंग गलियों से जब गुजरती हूँ
मैं हिजाब पहन लेती हूँ
मुँह छुपाने के लिए
कुछ रस्मों रिवाज निभाने के लिए
कुछ मवालियों से पीछा छुड़ाने के लिए-
घर में अकेली औरत ..
ताकती रहती है देहरी की ओर
प्रेम भरे नेत्रों से ...
करती है प्रतीक्षा पति की ..बच्चों की ..
उस अकेली औरत के
मित्र होते हैं जूठे बर्तन
उन्हीं के साथ खटपट होती है
फिर बड़े ही प्रेम से पोछती है उन्हें
रखती है सहेजकर सभी सामान .. रिश्ते भी ..
नही बिखरने देती .. नही होने देती खटपट ..
किसी की दासी नही होती है वह
उस महल की रानी होती है ..
रखती है अपनी निगरानी में सबकुछ ..
माँ बनकर पूरे परिवार को पोषित करती है ..
"घर में अकेली औरत" ही परिवार को पूर्ण करती है ..-
बहुत काम होते है,
घर में अकेली औरत को,
तेरी फिक़्र भी तो लगी रहती है,
तेरी माँ को,
यु तो घर मे सब बीमार होते है,
पर माँ की बिमारी का पता नहीं लगता किसी को,
जादू ही शायद करती है वो,
वर्ना बिना तेरे बोले,
तेरे दर्द का पता क्यों नहीं लगता किसी और को,
रेहमत है वो,
कदर कर उनकी,
थोड़ी मदद, और खिदमत कर उनकी,
वादा है रब का,
फिर,
माँ भी तेरी, जन्नत भी तेरी 💖💕-
औरत ही हैं वो जो मकान को घर बनाती हैं
तुम्हारा जीवन खुशियों से सजाती हैं
हर चीज को बेहतरीन बनाती हैं
तुम्हारी प्यार को मोहब्बत से सजाती हैं
हाँ औरत ही हैं वो जो बेटी बनकर पहला
और माँ बनकर दूसरा सबसे
सुन्दर रिश्ता निभाती हैं
बहन-बुआ-मससी-मामी-चाची
न जाने कितने नामों से जुड जाती हैं
औरत ही हैं वो जो मकान को घर बनाती हैं
बरसों लग जाते हैं उसे जिंदगी
समेटते-समेटते कभी बेटी
बनकर तो कभी बहू बनकर
न जाने कितने किरदारों को निभाती हैं
औरत ही हैं वो जो मकान को घर बनाती हैं
बहुत सुन्दर हैं ये औरत और
सरल भी जो सहन करती हैं और खामोशी से कह जाती हैं
जिस दिन न बोले बाबा की जान निकल जाती हैं
और मैया भी चुप हो जाती है
औरत ही हैं वो जो मकान को घर बनाती हैं
जब तक हक समझती हैं
न जाने क्या-क्या कह जाती हैं
जब टूट जाती हैं वो तो
बस खामोशी अपना लेती हैं
औरत ही हैं वो जो मकान को घर बनाती हैं-
Ghar m akeli aurat,
Aur Bahar mardo ka thikana!
Aankhe ojhal ho jana,
Jb mard ka ek raat ghar naa aana..
Dard seene m chupaye rakhna,
Izzat k khatir chehre pr muskan banaye rakhna..
Baccho ko dular dena,
Sanskaro ki vishesta batana..
Gamo k hote hue bhi jeene ki aas rakhna,
Aur Man m suhagan rehne ki abhilasha rakhna!
Mard k aane p uski nashili harkaton ko,
Khushi k sath sehna..
Pani laa kar ke pilana,
Baccho ko kamre m band krke khub cheekhna..
Aasan toh nhi yeh zindagi,
Magar fir b wo akeli stri ka,
Khushiyo k sath jee kar dikhana..
Apne baccho k liye Misaal banke dikhana,.-
"घर में अकेली औरत"
कई हिस्सों में बटती फिरती संवरती, कभी न
खुद से रूबरू हो पाती यही औरत की कहानी...!!!-