अगर मिलेगी कभी इजाजत डोरी सरकाने की,
गोरी चिकनी तंग जवानी चाहत बड़ी सहलाने की
कसे हुए जोबन उभरे से नहीं उछलते चलने पर,
प्यास बुझेगी हल्का तन हो देव इजाज़त दहलाने की
दर्द उठेगा मजा मिलेगा जन्नत होगी कदमों में,
ऐसे नहीं चरम सुख मिलता न ही होता रहमों में
सुर से सुर और ताल मिले जब दोनों जिस्म पसीने में,
फिर तो खुद ब खुद वजह बन जाएगी आने की-
तुझ संग ही तो रंगी हूं प्यारे, देख जरा अपना भी गाल।लाली तो तेरे मुख पर भी फिर क्यों मन में उठा सवाल।
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कब तक
कविता में सजती रहेगी
चूड़ियाँ सिर्फ गोरी कलाई में
कब तक
गोरा मुखरा ही बसेगा
चाँद की सुंदरता और अंगड़ाई में
कब तक
दूधिया सफेदी
रंगेगी सुंदरता की कल्पना
कब तक
रंग- भेद की
चलती रहेगी ये विडंबना
कब तक??
Anupama Jha
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गोरे -काले के भेदवाव नहीं हमें पसंद
गोरी राधा को सांवला श्याम ही है पसंद....
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इसी कश्मकश में
निकल गया
होली का त्यौहार।
उसके गोरे-गोरे गाल
मेरे हाथ में गुलाल
वो भी सुर्ख लाल।
जो लगा दूँ
गोरी को गुलाल..
कहीं हो ना जाये
'गोरी'..यह लाल गुलाल
कहीं हो ना जाये
गोरी के गोरे-गोरे गाल..लाल।
- साकेत गर्ग-
कभी-कभी ही सही, छुपा लिया कर तेरे मुखड़े को
कोरोना से कही ज्यादा, क़हर है तेरा, शहर में गोरी-
# 18-03-2022 # गुड मार्निंग # काव्य कुसुम #
# होली # गोरी # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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उड़े जब-जब आँचल तेरा, मंद-मंद मुस्कराए गोरी।
चाल चले जब नागिन-सी, लहर-लहर लहराए गोरी।
बल खाकर जब लहराए, दहक जाए तब तन - मन-
जब लेता यौवन अँगड़ाई-सी, बहक-बहक बहकाए गोरी।
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किसके रंग रँगी हो गोरी , तेरे कपोल दिखे हैं लाल ।
कैसी लाली तेरे मुख पे , कौन मल गया मंजुल गुलाल।।
#अनुशीर्षक-
करवट बदले रात रात भर जवानी बहुत तडपाए
इतनी गोरी चिकनी जांघें मन करता सहलाए
थिरकन मचती अंग अंग में अस्त व्यस्त सब बिस्तर,
भरी जवानी यूं तड़पेगी अंदर प्यास बुझाए
पतली कमर उठान नितंब के उल्टी लेटे सोंचे,
काश कोई मरोड़ दे तन और बड़ा बड़ा सा देखें
इधर से उधर पास ही है घर आहट हम तक आए,
चाहे मेरे जिस्म की गरमी से आग लगाए!-