Anchal Choudhary   (आंचल_की_कलम)
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खुद से बेहतर... खुद का कोई हमसफ़र नहीं.!! #my_life_line
Joined 9 May 2024


खुद से बेहतर... खुद का कोई हमसफ़र नहीं.!! #my_life_line
Joined 9 May 2024
1 MAY AT 15:30

कुँवारी ख़ुश्बू से मस्त ख़्वाब
महकते रहे सारी रात
साथी तेरे आने से रंगी होश
बहकते रहे सारी रात

शोख़ धड़कनों को सुन के
मचलते रहे सारी रात
बदन ज़ुनून की ख़ुमारी में
छलकते रहे सारी रात

जवाँ साँसों से हसीं साँसें
दहकती रही सारी रात
मज़बूत बाँहों के साये में
ढ़लकती रही सारी रात

शबनमी होंठों पे सुर्ख़ होंठ
सरकते रहे सारी रात
कमसिन ज़िस्म की गर्मी से
पिघलते रहे सारी रात

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1 MAY AT 14:39

कड़क पन नहीं कम यह जो बटन तने से कामुक हैं,
भरे हुए जब जोबन देखूं मिले नहीं तो भ्रामक हैं

सुंदरता की लिखूं शायरी हर पल याद जिन्हें करते,
जब दिखती सुंदर लगती हो तेरे लिए तो भावुक हैं

अब सोचो जब जोबन उछले हालत मेरी क्या होती ,
तरस तुम्हें भी न आता तभी बगीचे में न आती

चलो कोई भी बात नहीं तुम जब तक हम देखेंगे,
जब जाती इंतजार हैं करते मेरी जान कब आवक हैं

सांवली लड़कियां...
धूप की उस नस्ल से आती हैं जो खेतों में झुकी औरतों की पीठ पर पसीने के संग आई थी।

शरमाने पे
उनके गाल गुलाबी नहीं होते, ना वे काजल से आँखें धारदार बनाती हैं।
उनकी बोली में कोई राग नहीं, एकदम से कच्चे आम की खटास होती है।

वे जल्दी लड़कों की “क्रश” नहीं बनतीं,
क्योंकि ये देश “रूप” को सिर्फ़ गोरेपन में मापता है।

सांवली लड़कियाँ नीम की छाँव जैसी होती हैं,
झीनी ,कड़वी, मगर ठंडी, जिनकी छाया में कामुकता उगती हैं।

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30 APR AT 13:44

बिछा आँगन में सन्नाटा, घरौंदें में अकेले हैं
जिओ तन्हाई में हँस के, सफर में सब अकेले हैं।

जुदा है रोशनी दिल की,अँधेरा खौफ देता है
दर्द दिल पीर में गाओ,जगत मेला अकेले हैं।

सुहानी शाम डसती है,बुढा़पे का शिकंजा है
सताए याद मनन करना,बहुत जग में अकेले हैं।

दर्द की पीर गहरी है,छुपा के अश्क पी लेना
तसल्ली दिल को समझाओ,दर्द में सब अकेले हैं।

खड़ा वीरान साए सा,नजर उम्मीद खोती है
करो चिन्तन मनन मन में, हकीकत सब अकेले है।

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30 APR AT 13:24

रुई के फाहे जैसे ही बड़े नाज़ुक होते हैं कमसिन इंसानी रिश्ते
तितलियों जैसे ख़ूबसूरत और उन्हीं की तरह रंग बिरंगे

कभी ये बहुत ही पास आकर भी छूट जाते हैं
तो कभी बहुत जोर से पकड़ने पर टूट जाते हैं

इसलिए इन रिश्तों को संजीदगी से सहेजिये
रुपए पैसे के तराज़ू से तो इन्हें कभी न तौलिये

ये रिश्ते तो दिल से बँधे होते हैं दोस्तों
इनकी कच्ची डोर को सिर्फ़ हाथों से नहीं
दिल से भी थामिये।

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29 APR AT 14:21

सुबह होते ही सारे डर ना
जाने कैसे गायब हो जाते हैं।

इतनी तेज़ धूप के ताप से
बर्फ हुए दर्द पल भर में पिघल जाते है।

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29 APR AT 13:57

जब भी कोई बात चली
सहेली संग कामुकता की,
हमने भी महफ़िल में कर दी
तारीफ तुम्हारी सुंदरता की

रोज सुबह मेरी गली में निकले
चांद हमें दीदार मिले,
छाई थी खुमारी मुझ पर बोले
सब यह उसकी मादकता थी

जन्नत की हूरें कुछ भी नहीं
है करंट उसमें बिजली सा,
अनछुई जवानी प्यासी बहुत
ऊछट उसमें है तितली सा...

मन भरकर देखें बुत बनकर
बस ख्वाबों में खो जाते हैं,
अभी रात में आहटें आएंगी जब
आग लगे कामुकता की!

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29 APR AT 13:36

कामुकता वो आग सुहानी,
स्त्री का हर अंग बने कहानी।

रोम-रोम में छुपा समर्पण,
स्पर्श से जगे गहरा चंदन।

बिस्तर उमड़े, तपिश बढ़ाए,
जिस्म की गर्मी रूम को सजाए।

पसीना बूँद बन रंग निखारे,
भीगा तन उमंग को उभारे।

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29 APR AT 13:12

महिला अगर कामुक है तो
मर्दों की दृष्टि का वहां रुक
जाना स्वाभाविक है।

इसमें दृष्टि का कोई दोष नही
वह तो वासना के अधीन है।

जिसे मर्द जात चाहकर भी नहीं
रोक सकती और कोई कामुक

कल्पनाएं दृष्टी नही रखता
तो वह नामर्द होता है ।

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28 APR AT 14:41

जब खिंच जाए अंग अंग
भीगे तन जैसे कामुक रस
मेहनत से पसीना निकला है
तभी तो मिले चरम सुख

आगोश सख्त हो घंटों की
मेहनत करने की ताकत हो
तब जाकर जन्नत द्वार मिले
गोरा तन हो जाए तृप्त

वरना फिर सूखी सी लगती
अनछुई जवानी बे-रस की
चाहे जितनी दफा जाओ न
प्यास बुझी कामुक तन की

कभी आकर बगीचे में देखो
इंतजार में पूर्ण पुरुष बस
तुम्हें बहाना करना है भीगना
अगर टपके मधु रस।

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28 APR AT 13:40

मेरी गर्म सांसों की सरगोशियों से
तुम थोड़ा बहक जाते हो

मेरे जिस्म के हर उभार पर थोड़ा ठहर कर
फिर बहक जाते हो

तर ब तर मैं भी हूं तुम भी हो
सिलवटों के बहाने के लिए
तुम मुझ पर बिखर जाते हो

सब रफ़्तार में है
और वक़्त ठहरा है

शोर है कानों में
मगर ख़ामोशियों का पहरा है

मेरे शबनम की हर बूंद से
तुम रोम रोम महक जाते हो

ख़रोचु तुम्हे पुरज़ोर से
भींच लू तुझे उस छोर में

कि यूँ भिगो कर मुझे
तुम... दहक जाते हो।

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