Anchal Choudhary   (आंचल_की_कलम)
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Joined 9 May 2024


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19 MAY AT 13:07

बह निकले कामुक रस धारा छनक छनक पायल बाजे
धुन बन जाए खुद से ही जब गोरी मन माफिक साजे

कुछ दिन तो वीरान लगेगी गली शहर वह मोड़ भी
हम किसका इंतज़ार करेंगे हुस्न जो इतना मन को छाजे

मेरी चाहतें कहां तक गयीं ख्वाबों में क्या सजा डाला
सहलाने की रही तमन्ना लगता खुद को बजा डाला

आहें तो बाहर तक जाए सिसकी धुन कामुक सजाएं
जब उंगलियों से सहलाएं लगे जानकर कोई हुस्न तरासे।

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19 MAY AT 12:12

हम कैसे न तड़पे बताओ हुस्न ऐसा देखकर
इतनी पतली कमर पर लिखते हैं जान सिहरकर

हमें लिखना ग्रंथ है तुम आ गयी सुबह हुस्न दिखा
इतने दिन बेजान गलियां सूना लगता था शहर

जब सुबह देखा हुई थोड़ी जलन फिर सोच लिया
इतने दिन कुछ हो सका न संग में बैठी हो जलकर

हमको तो बस हुस्न कामुक देखना जो दिख गया
अनछुई जवानी लगती कभी बोलना भी तड़प कर

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17 MAY AT 15:49

अगर मिलेगी कभी इजाजत डोरी सरकाने की,
गोरी चिकनी तंग जवानी चाहत बड़ी सहलाने की

कसे हुए जोबन उभरे से नहीं उछलते चलने पर,
प्यास बुझेगी हल्का तन हो देव इजाज़त दहलाने की

दर्द उठेगा मजा मिलेगा जन्नत होगी कदमों में,
ऐसे नहीं चरम सुख मिलता न ही होता रहमों में

सुर से सुर और ताल मिले जब दोनों जिस्म पसीने में,
फिर तो खुद ब खुद वजह बन जाएगी आने की

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17 MAY AT 14:51

जब भी कोई बात चली
सहेली संग कामुकता की,
हमने भी महफ़िल में कर दी
तारीफ तुम्हारी सुंदरता की

रोज सुबह मेरी गली में निकले
चांद हमें दीदार मिले,
छाई थी खुमारी मुझ पर बोले
सब यह उसकी मादकता थी

जन्नत की हूरें कुछ भी नहीं है
करंट उसमें बिजली सा,
अनछुई जवानी प्यासी बहुत
ऊछट उसमें है तितली सा

मन भरकर देखें बुत बनकर
बस ख्वाबों में खो जाते हैं,
अभी रात में आहटें आएंगी
जब आग लगे कामुकता की!

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17 MAY AT 13:35

एक बार इन लबों से, मेरा नाम लीजिएगा,
कह कर मुझे आमीन, आराम दीजियेगा।

शहर के सरफिरे हैं, हम दोनों जहान में,
बताकर मुझे मसीहा, पहचान दीजियेगा।

चेहरे से चमक जो छलके, केशों से लिपट आपके,
नज़रें झुका के यूँ ना सनम, मेरी जान लीजिएगा।

बेचैन करके मुझको, खुद चैन कहाँ आपको,
बाहों से लिपट के ऐ सनम, एहसान कीजिएगा।

दिल में उतर के आप मेरे, सरेआम कीजिएगा,
कह कर मुझे मोहब्बत, बदनाम कीजिएगा।

रूठे सनम जो मुझसे, ये मान लीजिएगा,
रूठा सारा जहान है, ये जान लीजिएगा।

एक बार इन लबों से, मेरा नाम लीजिएगा,
कहकर मुझे आमीन, आराम दीजियेगा।।

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1 MAY AT 15:30

कुँवारी ख़ुश्बू से मस्त ख़्वाब
महकते रहे सारी रात
साथी तेरे आने से रंगी होश
बहकते रहे सारी रात

शोख़ धड़कनों को सुन के
मचलते रहे सारी रात
बदन ज़ुनून की ख़ुमारी में
छलकते रहे सारी रात

जवाँ साँसों से हसीं साँसें
दहकती रही सारी रात
मज़बूत बाँहों के साये में
ढ़लकती रही सारी रात

शबनमी होंठों पे सुर्ख़ होंठ
सरकते रहे सारी रात
कमसिन ज़िस्म की गर्मी से
पिघलते रहे सारी रात

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30 APR AT 13:44

बिछा आँगन में सन्नाटा, घरौंदें में अकेले हैं
जिओ तन्हाई में हँस के, सफर में सब अकेले हैं।

जुदा है रोशनी दिल की,अँधेरा खौफ देता है
दर्द दिल पीर में गाओ,जगत मेला अकेले हैं।

सुहानी शाम डसती है,बुढा़पे का शिकंजा है
सताए याद मनन करना,बहुत जग में अकेले हैं।

दर्द की पीर गहरी है,छुपा के अश्क पी लेना
तसल्ली दिल को समझाओ,दर्द में सब अकेले हैं।

खड़ा वीरान साए सा,नजर उम्मीद खोती है
करो चिन्तन मनन मन में, हकीकत सब अकेले है।

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30 APR AT 13:24

रुई के फाहे जैसे ही बड़े नाज़ुक होते हैं कमसिन इंसानी रिश्ते
तितलियों जैसे ख़ूबसूरत और उन्हीं की तरह रंग बिरंगे

कभी ये बहुत ही पास आकर भी छूट जाते हैं
तो कभी बहुत जोर से पकड़ने पर टूट जाते हैं

इसलिए इन रिश्तों को संजीदगी से सहेजिये
रुपए पैसे के तराज़ू से तो इन्हें कभी न तौलिये

ये रिश्ते तो दिल से बँधे होते हैं दोस्तों
इनकी कच्ची डोर को सिर्फ़ हाथों से नहीं
दिल से भी थामिये।

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29 APR AT 14:21

सुबह होते ही सारे डर ना
जाने कैसे गायब हो जाते हैं।

इतनी तेज़ धूप के ताप से
बर्फ हुए दर्द पल भर में पिघल जाते है।

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29 APR AT 13:12

महिला अगर कामुक है तो
मर्दों की दृष्टि का वहां रुक
जाना स्वाभाविक है।

इसमें दृष्टि का कोई दोष नही
वह तो वासना के अधीन है।

जिसे मर्द जात चाहकर भी नहीं
रोक सकती और कोई कामुक

कल्पनाएं दृष्टी नही रखता
तो वह नामर्द होता है ।

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