शिवशंकर बाबू के सरकारी नौकरी से रिटायर हुए तीन महीने हो गए पर पेन्शन शुरू नहीं हुआ। जिस अधिकारी के टेबुल पर उनके कागज़ात लंबित थे, वह एक ही बात कहता, 'कुछ वज़न रखिए, कागज़ात उड़ जाते हैं'
उनको चाँद कह रहे हो तो, हमे भी गुलाबजामुन कह ही दिया जाए। वो किस्मत में होंगी तो मिल जाएगी, खैर छोड़ो उनको हमे चख कर बताओ की हमारी दोस्ती का मिठास कैसे है।।
काश हमे भी गुलाब भेजता कोई मैं चूम कर उसे महसूस करता.. उसका प्यार .. पर कोई ना भेज रहा है गुलाब अरे गुलाब ना सही गुलाब जामुन का पैकैट ही भिजवा दो ....🙄😋
उनकी मुस्कान वैसे भी हमें गुलाब-जामुन सी मीठी लगती है, पर जब वो मुस्कान सिर्फ मेरे लिए हो, तब तो वो मिट्टी के बरतन में रखे गरम गुलाब-जामुन सी सौंधी और रसीली हो जाती है।