शीर्षक: अच्छा जाना सुनो
अच्छा जाना सुनो!
जरा पास बैठो, तुम्हें कुछ बताना है
चाहत इस दिल की तुमसे जताना है,
लड़खड़ाती इस ज़ुबान को आज
तुम्हारे साथ प्रीत के गीत गाना है,
शर्माई, झुकी पलकों तले नज़रों को
तुम्हारी निगाहों में आज डूब जाना है।
(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)-
🎂 1st Nov🍫
🍁1st quote: 15 Aug 2017✍
🍁 Obra वासी (UP)
🍁 Educator, Write... read more
शीर्षक: ज़रूरी तो नहीं
दिल की हर बात बताना ज़रूरी नहीं,
ज़ज्बातों को लफ़्ज़ों तक लाना ज़रूरी तो नहीं।
आँखों से छलकते हैं बेहिसाब आँसू,
हर एक बूँद की वज़ह बताना ज़रूरी तो नहीं।
कई रातों से सोई नहीं ये आँखें मेरी,
तू वज़ह है जागने की, ये जताना ज़रूरी तो नहीं।
तेरा नाम लेकर धड़कतीं हैं ये धड़कनें,
यह आवाज़ तुझ तक भी जाए, ज़रूरी तो नहीं।
ख़ामोशियाँ भी तेरे साथ को तरसती हैं,
अब हर बार तुम्हें ये समझाना ज़रूरी तो नहीं।
मौज़ूदगी से तुम्हारी फ़र्क पड़ता है,
आदत हो तुम मेरे, ये दिखाना ज़रूरी तो नहीं।
कोना-कोना दिल का खिलता है तुमसे,
तुमसे बेपनाह मोहब्बत है, ये बताना ज़रूरी तो नहीं।-
Tears of ocean can,
either engulf you in it,
or can give a new path.-
जिंदगी चाहे कितनी भी छोटी हो,
नसीब जीवन के हर रंग दिखा देती है।
मुस्कुराहट के चाहे कितने भी नकाब हों,
चोट लगने पर आह ही निकलती है।
ठोकर लगते हर सर झुक जातें हैं,
अकड़ तो सिर्फ़ लाशों में मिलती है।
ख्व़ाबों की हसीन दुनिया छोड़,
जिंदगी हकीकत में जीनी पड़ती है।
रखते नहीं जो कदम ज़मीन पर,
मरकर उन्हें भी मिट्टी ही मिलती है।-
बाट जोहे नयन ये मोरे
दरस को तरसे हम तिहारे
नैनों की प्यास बुझा जा रे
ओ! गिरधारी आजा रे...
कर्णों को अमृत तू पिला दे
मुरली के रस इनकों दिला दे
धुन कोई मधुर सुना जा रे
ओे! मुरारी आजा रे...
अधरों पर बस नाम तिहारा
मनवा जपें बस तेरी माला
मन की तृष्णा मिटा जा रे
ओ! बनवारी आजा रे...
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रहने भी दे हमें आज तू
ज़रा अपनी पनाह में,
एक सुकून सा मिला मुझे
बस तेरी ही छाँव में,
ख़ामोश हैं ये लब मेरे
सुने तेरी आवाज़ ये,
धड़कन मेरी है थमीं हुई
तेरी साँसों के साथ में,
है जमा हुआ दर्द बर्फ़ सा
पिघला तेरे ही प्यार में।-
जिस व्यक्ति के हर फैसले में क्रोध या अहंकार के भाव हों, वह जीवन के अंतिम क्षणों में अकेला रह जाता है।
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रूप से प्रेम जिस्म की चमक तक बंधा रहता है
स्वभाव से प्रेम सोच के परिवर्तन तक सीमित रहता है
गुणों से प्रेम विपरीत परिस्थितियों तक निहित रहता है
पर व्यक्ति से प्रेम जन्म-जन्मांतर तक रहता है।-
आज का सुविचार
अहंकार को धारण करके मनुष्य ना ज्ञान अर्जित कर सकता है और ना ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है, क्योंकि अहंकार का आवरण हमारी इंद्रियों को वश में करके हमारे बुद्धि और विवेक को क्षीण कर देता है। अतः मनुष्य में विनम्रता ही असके उद्धार का उत्तम स्रोत है।
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शीर्षक: ईर्ष्या
मैं वह भाव हूँ, जो सहसा मन में आता हूँ
कभी कुछ खोने का डर, कभी चिढ़ जगाता हूँ
तुम बेखबर रहते हो और मैं घर कर जाता हूँ
इस विश्व में ईर्ष्या, जलन के नाम से जाना जाता हूँ।
मुझपर किसी का कोई अंकुश नहीं
अपनी इच्छा से किसी मन का स्वामी बन जाता हूँ,
जिस मन की होती कच्ची नीव विश्वास की
उसी कमजोर मन पर मैं अपना आधिपत्य जमाता हूँ।
मैं रिश्तों में जन्म लेकर तिनको में बाँटता
राज्य या देश में उत्पन्न होकर द्वंद करवाता हूँ।
कुढ़न का जाल बना मन को उलझाता,
विद्वेष सर्वत्र फैला नकारात्मकता को बढ़ाता हूँ।
पर जहाँ संतुष्टि, संतुलित एवं विश्वास हो
मैं वहाँ कभी अपनी शाख नहीं फैला पाता हूँ
जिस पवित्र मन में आस्था, समर्पण का भाव हो
उस निष्ठावान चित को मैं कभी छू भी ना पाता हूँ।
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