गली के कुत्ते को बगीचे के सुंदर फूलो से प्रेम नहीं सुहाने मौसम से उसका कुछ लेन-देन नहीं हरे भरे पेङो की तरफ वो देखता भी नहीं कोयल की कूक तो कभी वो सुनता ही नहीं उसे तो प्रेम है उस बुजुर्ग से जो रोज सुबह उसे बिस्किट देता है क्योकि प्रेम तो उसी के लिए पनपता है जो बिन कहे आपकी हर जरूरत समझता है
जब हम पैदा हुए तब बहुत छोटे थे फिर थोङे बङे हुए मगर छोटे ही थे फिर थोङा और बङे हुए मगर छोटे ही थे धीरे-धीरे बङे तो हो रहे थे पर कहने को छोटे ही थे हाफ पैंट से फुल पैंट में आ गए पर फिर भी छोटे ही रहे और फिर एक दिन पहली बार हमें चाय पीने को दी गई बस उस दिन हम बङे हो गए अपने पैरो पर खङे हो गए