छोड़कर बूढ़े माँ-बाप को वहॉं , खुद को मकाम हासिल बताते हैं।
वो शहर के एक मुवक्किल क्या बनें, गांव को अब जाहिल बताते हैं।
छोड़ दिया तुमनें साथ मेरा, यूँ कहकर कि सफर हो गया है पूरा
कश्ती है अभी बीच मझधार, दूर दिख रहे वो साहिल बताते हैं।
फूल भी मिलेंगे पत्थर भी मिलेंगे, हारना नहीं हिम्मत कभी तू
सफर कैसा हो साथी कैसा हो, ये तो तुम्हारे मंजिल बताते हैं।
भरोसा खुद पे करना सीख ले ए दोस्त, यहाँ साथ नहीं देगा कोई
जिसे खुद कभी पा नहीं सकते, दूजे को भी मुश्किल बताते हैं।
ये तो फितरत है जमाने की, यहाँ सब के हाथ एक खंजर है
बात जो नायाब इंसानों की हो, खुद को सभी काबिल बताते हैं।
जरूर मजबूर किया होगा किसी नें, जो मर गया वो खुदकुशी करके,
कौन कुबूल करता है गुनाह अब, सब तो दूसरों को कातिल बताते हैं।
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