QUOTES ON #गाँव

#गाँव quotes

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15 MAY 2019 AT 20:49

#sunona

सुनो..
तुम फेसबुक या इंस्टाग्राम पर आओ न..
लाखों फॉलो करेंगे तुम्हें..मैं भी मिलूंगी वहीं..
सोचता हूँ..चला गया तो..गाँव का बूढ़ा बरगद..
अनफ्रैंड न कर दे मुझे..!!

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13 JAN 2019 AT 16:26

गाँव का साहित्य

सोहर गूँजे घर में महीनों बीत चुके हैं ,
बच्चा अब अन्न ग्रहण करने की स्थिति में आ चुका है । अब सोलह संस्कारों में एक , अन्न-प्राशन के संस्कार का समय आ गया है ।

आज हम अन्न-प्राशन के लोक साहित्य पर चर्चा करेंगे ।
( अनुशीर्षक में पढ़ें )

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23 OCT 2018 AT 23:54

शहर जाकर बस गया हर शख़्स पैसे के लिए
ख़्वाहिशों ने मेरा पूरा गाँव ख़ाली कर दिया।।

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23 JAN 2020 AT 9:29

तुम्हारा शहर होना भी जायज़ है
मै ही अपने गली कूचे नहीं निकल पाया ...

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16 JAN 2019 AT 13:00


शहर में ही पंछियो को पकड़ना समझदारी है,
गाँवों में दाने उछालने आज भी जारी है ।।

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26 JUN 2020 AT 7:28

छोड़कर बूढ़े माँ-बाप को वहॉं , खुद को मकाम हासिल बताते हैं।
वो शहर के एक मुवक्किल क्या बनें, गांव को अब जाहिल बताते हैं।

छोड़ दिया तुमनें साथ मेरा, यूँ कहकर कि सफर हो गया है पूरा
कश्ती है अभी बीच मझधार, दूर दिख रहे वो साहिल बताते हैं।

फूल भी मिलेंगे पत्थर भी मिलेंगे, हारना नहीं हिम्मत कभी तू
सफर कैसा हो साथी कैसा हो, ये तो तुम्हारे मंजिल बताते हैं।

भरोसा खुद पे करना सीख ले ए दोस्त, यहाँ साथ नहीं देगा कोई
जिसे खुद कभी पा नहीं सकते, दूजे को भी मुश्किल बताते हैं।

ये तो फितरत है जमाने की, यहाँ सब के हाथ एक खंजर है
बात जो नायाब इंसानों की हो, खुद को सभी काबिल बताते हैं।

जरूर मजबूर किया होगा किसी नें, जो मर गया वो खुदकुशी करके,
कौन कुबूल करता है गुनाह अब, सब तो दूसरों को कातिल बताते हैं।

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29 JUN 2020 AT 10:16

रोजमर्रा की ज़िंदगी मे
क्या सोचकर
'रह' जाते है हम
लौट आते है 'खाली' हाथ अक्सर

'उम्मीदों' को रख छोड़ना
किसी और भरोसे
सीख जाते है हम
'अधिकार' पराया
'रूह' पराई
'खुशियां' पराई

सर उठाकर जीना
गवारा है उसे
अधिकार उसके ही है सुरछित
सर पर जिनके 'हाथ' हो
धन यौवन 'सब' साथ हो

'घूँघट' में
आज भी खिलती है
'सभ्यता' कही
की लोग जिसे 'गांव' कहते है

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21 JUN 2020 AT 7:38

ममता की आँचल में, ममता की छाँव में ।
मन मेरा रमता है, उस छोटे से गाँव में ॥
मन मेरा माँ की गोंद में जब सोता है,
स्वर्ग के जैसा एह्सास मुझे होता है
माँ मुझे अपने गले से लगा लेती है,
दिल मेरा जब किसी बात पे रोता है

हर गलती पे मेरी, माँ आती है बचाव में ।
मन मेरा रमता है, उस छोटे से गाँव में ॥
हर रोज माँ का मुझको वो समझाना,
पापा का मेरे लिये नये उपहार लाना
भाईयों का मुझसे वो लड़ाई करना,
वो बहनों से हाथ पे राखी बंधवाना

अच्छा नहीं लगता कुछ भी, उस प्यार के अभाव में
मन मेरा रमता है, उस छोटे से गाँव में ॥
मेरी खुशियों के लिये हर रोज मंदिर जाना,
हर काम से पहले दही और चीनी खिलाना
घर से दूर जाते वक्त मेरे ए "नवनीत"
दरवाजे के पीछे छुपके माँ का आँसू बहाना
भवसागर पार करना है इस संस्कार के नाँव में ।
मन मेरा रमता है, उस छोटे से गाँव में ॥

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19 MAY 2020 AT 8:05

आधी भूख, बोझिल मन, अधूरे ख़्वाब से दिल रो रहा है,
रास्ते वो ही, रहबर वो ही, गाँव का ठिकाना ढूंढ रहा है!

मायूस रुख़, दरीदा बदन, शिक़स्ता पाँव लौट रहा है,
ख़त्म हो गईं ज़रूरतें शहर की, सो गाँव, गाँव लौट रहा है!

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15 JAN 2020 AT 10:51

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