जिस्म महँगे थे बाजार में हम गरीबों के लिए
लौटते वक्त
लगाकर दाँव पर ज़िंदगी सस्ती सी मोहब्बत कर ली-
घर का नाम सायबान,रख लेते,
खुद का नाम कदरदान रख लेते।
दौलत तो बहुत कमायी तुमने,
कुछ गरीबों का भी ध्यान रख लेते।
किसी भूखे को भी कभी घर बुलाके,
उसकी भूख का भी मान रख लेते ।
शान में उसके कुछ फूल रखते गर ,
किसान का भी फिर सम्मान रख लेते।
अगर जुबान मीठी रखते कभी तो,
दिल किसी बेजुबान का रख लेते ।
प्रेम से कभी हमें भी बुलाया होता ,
"जया"नाम तुम्हारा तो मेहरबान रख लेते ।-
सदियां बितती गई,कई क्रांतियां भी होती रही,
कई विद्रोहें हुई, उन विद्रोहों में लोग भी जुड़ते गए,
देश बंटा,लोग बंटे,
सरकारें बदली, कुछ मांगे पूरी भी हुई,
पर गरीब तभी से अभी तक यही पूछता रहा
कि इन सब में उनकी "रोटियां" किधर गई...!!!!
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देखी हैं बरकत मैंने गरीबों के घर में,
आज कल मुस्कान अमीरों के चेहरे से गायब जो हैं।-
गरीबों की बस्ती में,
खुशी का नजराना देखा है मैंने,
खुशियाँ बाँटते हैं सब,
दिल का सच्चा याराना देखा मैंने।-
जरूरी
तुम मेरे लिए ऐसे जरूरी हो जैसे
दुवाओं में अर्ज
गरीबों को कर्ज
मरीजों को नर्स
और चार्सियो को चर्स-
दौलत की भूख ने
अपनों को अपना नहीं समझा
गरीबों को इंसान नहीं समझा
अच्छा होता यदि भूख
मदद करने की होती
तो हर इंसान खुशहाल होता-
गरीबी को देश से मिटाने की बजाय
गरीबों की सोच से मिटाना ही
सफल भारत की ओर
सबसे बड़ा निर्माण होगा ।-