आज कल तो गज़ब हो रहा है।
पटल पर विकास का नाम नहीं,
और मंच पर विकास की गाथा गाया जा रहा है।
मानो धरा भाग्यशाली है।
जो फलाने पार्टी की सरकार बनी,
ऐसा बार-बार जताया जा रहा है।
लोगों की खामौशी।
लोकतंत्र के लिए खतरा बने,
ये डर मुझे सताये जा रहा है।
गरीब और गरीब हो गया।
और अमीर और अमीर हो गया,
ये बात मुझे खाये जा रहा है।
योजना अनगिनत निकले।
आम जन के लिए या राजनीतिक चाटूकारों के लिए,
ये बात मुझे हज़म नहीं हो रहा है।
जनता के पैसे।
पर जनता आज भिखारी हैं,
ये दशा देश के लिए विनाशकारी दिख रहा है।
जनता भली या सच में मुर्ख।
हर बार समझते-समझते,
मुझमें उलझन और बढ़ जाया जा रहा है।
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आज़ादी का मतलब है
किसी के गंदे विचारों पर ना जिकर
खुद के विचारों पर जिए,
किसी का बंदी न बनकर
खुद आसमां में उड़े......-
ज़िन्दगी की यादें
पुराने किताबों की तरह हो चुकी हैं
गन्दे और फटे
न हम उन्हें फ़ेक पाते हैं
और न ही रख पाते
बस किसी कोने पे छोड़ देते है
हम उसे देखते हैं
सोंचते हैं
और फ़िर इतना सोंचने लगते हैं की
कुछ भी याद करने को दिल नहीं करता
लगता हैं
या तो किताब न देखूँ
या फिर उसे फिर से पढ़ूँ-
भीतर की गेहराईयां देख, गभराया क्यूँ तू बन्दे,
राज़ है जितने दफ़न यहाँ, भूल मत है सारे तेरे अपने,
जानते है, राज़ तेरे सब, होंगे अच्छे तो कुछ गंदे,
भूल के भीतर के "खुद "को, मिलेगा ना तुझे खुदा,
खुद को जानना हो अगर, होना होगा तुजे सबसे जुदा....
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कमियां बहुत खोजते हैं वो लोग मुझमें,
जिनके कर्म उनके गिरेबान से भी गंदे हैं...-
सभी गंदे और जहरीले लोगों को अपनी जिंदगी से निकाल दीजिए जैसे चाय में से मक्खी को निकालते हैं !!
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कुछ लोग इतने गंदे होते है ना कि उनकी झूठी अच्छाई में वो गंदगी साफ झलक जाती हैं,,,,(A❣️N)
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बनाया जिस कुदरत ने हमें
उसमे ही कूड़ा डाल गए
हम इतने गंदे हो गए
जा रही थी किसीकी जान
पर देखके भी अनदेखा कर गए
इतने हम अंधे हो गए
हद तो हो गयी उस दिन
जब किसीके बलात्कार का खयाल दिल में आया
लेकिन बलात्कारी के धर्म को देखकर
उसे बचाने या जलाने की बात करके
हम हद से भी नीचे गिर गए
किस मुंह से मांगे इंसाफ हम
जब हम खुद धर्म के राजनीति के बंदे हो गए
- नितीन गमरे
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