Nitin Gamare  
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Joined 15 July 2022


Joined 15 July 2022
28 APR AT 19:55

खुली क़िताब हूँ मैं मगर
किसीने साँझा किये हुये राज़ किसी और के सामने नहीं रखता
तुम्हारे खेल का मैं उमदा खिलाड़ी हूँ लेकिन
धोके के दाँव खेला नही करता
आसमाँ छूने का जुनून है मुझमें लेकिन
खुद को ऊँचा दिखाने के लिए मैं किसी को बौना नही दिखाता
© नितीन गमरे

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24 APR AT 21:09

मज़हब की ऊंचाई से गिरकर
इंसानियत कत्ल हो गयी कुछ अंधे ख़यालों से।
छोटे बड़े पैमाने में
ये भारत के हर गाँव मे कत्ल होती ही आ रही है
कुछ हजार सालों से।
© नितीन गमरे

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18 APR AT 19:21

ढाल बनकर धरती पे पड़ने वाली सूरज की तपिश को
चाँद खुद पर झेल लेता है
चाँद के इस कुर्बानी को लोग ग्रहण कहते है।
©नितीन गमरे

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11 APR AT 12:38

जुनून कुछ ऐसा छाया करता था कभी
कि मौत सोचा करते थे मोहब्बत में और वतन परस्ती में
उतर गया अब जुनून का बुखार
अब सोचते है कि जैसी भी हो बस मिल जाये मौत जिंदगानी में

© नितीन गमरे

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10 APR AT 22:06

एक फुलिफली सी बाग थी उस जमीन पे
एक पौधा भी वहा खिल उठा था
मौसम के करावटों पे झूलता हुवा पेड़ वो बना था...
बरस रही थी खुशिया हर दिशा से
फूल ही फूल था हर शाख पे
खिलखिलाता जैसा वो कोई चमन था..
उठ कर आई आँधी फिर कही से
गिर गए फूल सारे टूटकर शाखों से..
गिरी ऐसी गर्म धूप फिर
रेत भर पड़ी पूरी बाग में..
के वो बाग एक उजड़ी हुई सी जमीन है अब
मगर वो पेड़ वैसा ही उम्मीद लेकर है
फिर कभी खुशियां बरसेंगी बादलों से
फिर एक बार फूल खिलेंगे शाखोंसे..

©नितीन गमरे

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24 MAR AT 22:28

बस ची वाट बघताना
दोघांमध्ये असलेल्या दहा पावलांच्या दुराव्यात जे होतं
ते प्रेम होतं...
नजरेला भिडताच नजर
असंख्य भावना ओसांडूनही
जे ओठांवर कुलूपबंद होतं
ते प्रेम होतं...

©नितीन गमरे

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22 JAN AT 22:11

कबिरा कहे ये जग अंधा 
कबिरा कहे ये जग अंधा 
अनबन जब बढे तब घर की चौखट टूट जाय 
बात दूर तब कुछ कानो तक जाय  
मायका दुल्हन को पट्टी फिर बतीयाय 
अंधी दुल्हन तब होये जाय 
वो बस बात सुने जाय 
दुल्हन की सखियाँ फिर दुल्हन का घर जलाय
झुटी चाम चटाय 
नफे फायदे की बात बताये वो 
जिसका चौपट है धंदा 
कबिरा कहे ये जग अंधा 
कबिरा कहे ये जग अंधा

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18 JAN AT 23:37

जेवणात भेटणाऱ्या केसापेक्षा 
गळा कापणारा केस नेहमीच जास्त धोकादायक असतो.
©नितीन गमरे

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30 DEC 2024 AT 14:19

एक तितली नन्ही सी मासूम 
फ़ूल फ़ूल वो घूमती थी
बाग बाग वो महकती और चहकती थी
फिर मिला उसे एक भंवरा
संग उसके वो भी गुनगुनाने लगा
वो दोनों उड़ते यहाँ वहाँ
गली गली और नहर नहर
भंवरा तितली को और ऊंचाई पे ले उड़ाता
नए नए अरमानों का आसमाँ उसे दिखाता
तितली भी बेबाक होकर उसके साथ उड़ने लगी
कंधे पर उसके बैठकर
जिंदगी जीने लगी
फिर हुवा कुछ ऐसा
भंवरा तितली के पंख खा गया
ऊंची उड़ती तितली के अरमानों को
जमीन में रौंद गया
चहकती तितली की 
वो महक लूट गया
बेजान सी पड़ी है तितली अब जमीं पर
जैसे कोई सूरज दिखाके 
जिंदगी में अंधेरा कर गया

© नितीन गमरे

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28 NOV 2024 AT 22:34

प्राशिले थेंब थेंब त्याने
तरी अतृप्त तृष्ण राहिला
जिंकले सारे प्रेम त्याने
तरी राधेविणा कृष्ण राहिला
© नितीन गमरे

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