मां की "पेट",
घर की "चौखट",
स्कूल बस की "सीट",
कॉलेज का "कैंटिन",
दफ्तर की "लिफ्ट",
मेट्रो के "डब्बे",
ऑटो रिक्शा का "रियर मिरर,
बाजार की "भीड़",
घड़ी की "सुई",
कपड़ो की "लंबाई"
"चौक" पर लड़कों की "तंज",
बड़े होते ही पराय घर की "मोड़",
यहां तक की अस्पताल का "ऑपरेशन थिएटर",
राजनीतिक बहस का "मुद्दा",
सपनो का "शोर",
पॉलिटिक्स लिखने पर "रोक",
और "कौन कौन" सी ऐसी जगह या चीज है,
जहां इस "खोंखली समाज" ने एक औरत को
ये "एहसास" करवाया है की
उसे "औरत" नहीं होना चाहिए था...!!!!
:--स्तुति
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7 MAY 2021 AT 13:03
29 JUL 2019 AT 21:04
ज़िंदगी कर रही है दिन पर दिन खोखला
शायद प्रभु मुझे होठों से लगायेंगे-
15 JAN 2018 AT 11:32
हाथ से जैसे रेत बिखरता है,
धीरे धीरे खोखला कर छोड़ता है।
ख़ुशी भी कुछ यूं ही फिसलती है,
धीऱे धीऱे, दबे पाँव।
जब ज़िन्दगी से कोई जाता है ऐसे,
अपने साथ जीने की ख़्वाहिश ले गया हो जैसे।
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27 SEP 2018 AT 11:57
वो दौर-ए-इश्क,खूबसूरत शाम सा गुजर गया
अब खुदगर्ज सी रात आई है
खोखला जिस्म उधेड़ने के लिए-
26 MAR 2021 AT 8:17
कहने को तो मौन बहुत है मित्र मेरा, मगर
बोलता है तो बात की क़ीमत बढ़ा देता है!-
29 JUL 2019 AT 20:52
बांस की कांठ को "खोखला" होना पड़ता है,
बांसुरी बनने के लिए।
शायद, व्यक्ति को भी "खोखला" होना पड़ता है,
कुछ बनने के लिए।-
4 JUL 2019 AT 16:43
खा गए भीतर तक,मुझे खोखला कर डाला
खून पीने को मुझपे जोंक से चिपक गए तुम-