निराश किसान
बैठा हुआ है सर पर सेठ...
मेहनत का नहीं मिलता उचित रेट...
बरसात की आस में सूखे पड़े हैं खेत...
घटती जा रही है अब अपने जीवन की रेत...
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अपने दुःखों का किस्सा मैं किस्से बांटने जाऊं...🤷🏻♂️
शाम को आईपीएल देखूं या गेहूं काटने जाऊं...😒-
हाँ! होगी तिजोरी मे बंद दौलत तुम्हारी,
किसानों का तो सोना भी पड़ा है पानी में।😒-
||दोहा||
पैदावार सही तभी, जब अच्छा हो बीज;
समय-समय पर खाद दे, समय-समय पर सींच|-
खेत जिसकी जान है
मेहनत उसकी पहचान है
हारना ना उसकी फितरत में
जिन्दगी ना उसकी आसान है
उसकी कशमकश की लंबी है कहानी
आंधी से वो लड़े जाए
सूखे को पसीने से सिचे
बंजर को उपजाऊ करे
हाथो में बसे हरियाली
अब तिल तिल वो मर रहा है
यही है उसकी कहानी
देश के आर्थिक बल है वो
भूखे देश का फल है वो
फिरभी नेता काट रहे है
झूठे वादे बाट रहे है
कर्ज के बोझ में दब रहे है
फिरभि हम पूछ रहे
नजाने क्यों वो मर रहे है
सत्ता में आने का जरिया बन बैठा
यही राग नेता अलाप रहे है
रब की रहमत है उनकी हाथो में
देवो सी पहचान है
ये हमरे देश के किसान है
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जो खाना खाने का मजा खेत में बैठ कर खाने में है ,
वो मजा बड़े से बड़े होटल में भी नहीं है !!-
छह महीने का इंतजार...
छह महीने का प्यार...
छह महीने की कड़ी मेहनत...
जब मिलती है!
तो फल कुछ ऐसा होता है
उसमें एक आनंद है।-
कह दो दिल्ली में बैठे सियासतदारों से,
हम किसान हैं..........
तोड़ देंगे सब दरवाजे अपनी हुंकारों से ।।-
कुंडलिया- बसंत
सरसों फूले खेत में,
कोयल कूके डाल।
पक्षी कलरव कर रहे,
बच्चे हुए निहाल।
बच्चे हुए निहाल,
देख किलकारी मारें।
मात-पिता संग नित्य,
सुनें वो राग मल्हारें।
'नवल' हर्ष चहुँ ओर,
शरद ऋतु को हैं भूले।
करें ठिठोली खेल,
खेत जब सरसों फूले।।-