एक होकर भी हमारे एक जैसे एहसास ना हुए, आस-पास होकर भी इक दूजे के पास ना हुए ।। सब खो कर भी कोई ग़म ना था मुझे... मगर..., ग़म ये रहा, ख़ास होकर भी हम उनके ख़ास ना हुए ।।
ख़ुदग़र्ज़ लोग वफ़ा का तराना सुना रहे हैं, झूठ बोलने वाले सच का आईना दिखा रहे हैं । जो चल नहीं सकते दोस्ती में चार क़दम साथ, वो लोग आजकल मुझे मुहब्बत सिखा रहे हैं ।।