प्रेम, वासना, खुशी, ग़म, हंसी, रूदन, सब है मुझमें,
मुझमें जज़्बात जिंदा हैं, मैं जिंदा हूँ मुर्दा लाश नहीं ।।-
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अब मुहब्बत की हसीन कहानियाँ कहाँ मिलती हैं,
सोनी हीर लैला जैसी दीवानियां कहां मिलती हैं ।।
गुज़र के भी रह जाएं इश्क़ के निशान जमीं पर,
इश्क़ में ताजमहल जैसी निशानियाँ कहाँ मिलती हैं ।।-
मेरे जज़्बात मेरे अल्फ़ाज़
"बिखरना" एक छोटा-सा शब्द मात्र है लेकिन मैंने इसे महसूस किया है ।
अपनों के तानों से लेकर बिछड़ने पर बिखरा वहां तक हर एक पल इस शब्द मात्र को दिल और मन की अनंत गहराइयों से महसूस ही नहीं किया इसे जीया है मैंने ।
मैं जो हूँ जैसा हूँ पूर्णतया ग़लत हूँ कहकर तोड़ा गया मुझे, हर शब्द चुन-चुन कर बोलकर तोड़ा गया तोड़कर तानों और व्यंग्य की ठोकरों से बिखेरा गया ।
मेरे फैसलों ने फासले बढ़ाए धीरे-धीरे फिर उन्हीं फासलों ने विकराल रूप धारण कर मुझे फिर बिखेर दिया ।
फिर सिमटने और बिखरने के इस दौर में आया एक नया दौर प्रेम, प्यार, इश्क़, मुहब्बत का दौर ।
इस दौर को एक शब्द में समेटूं तो यह टूटकर बिखरने का अंतिम दौर था ।
प्रेम के इस दौर में इस कदर बिखरा की फिर कभी खुद को समेट ही नहीं पाया ।
टूटने बिखरने के इन दसकों में भी मैं दौड़ता रहा तूफ़ान की रफ्तार से मगर अब अंतर्मन ठहर जाने को आदेशित कर चुका है ।
क्यों कि.....
हर दफा अपने बिखरे टुकड़ों को समेटकर रख देता हूँ उन सिसकियों पर ताकि कोई सुन ना ले मेरी अंतरात्मा की उस पीड़ को जो याद दिलाती रहती है कि टूटना और बिखरना मेरी नियति है ।।
नियति को कोई बदल नहीं सकता ना भूत ना वर्तमान ना भविष्य.......-
पल में बदलते जज़्बात देखे,
पल में बदलते ख्यालात देखे ।
सवाल वही रहे मेरी जुबां पर..,
बस लोगों के बदलते जवाब देखे ।।-
तेरे दिल से निकली सिसकियों कि चुभन,
आज भी मेरी आंखों में ले आती हैं रूदन ।
ये कैसे किस्से हुए अपने इश्क़ कि कहानी में,
तू मिली बेकद्रों को मेरे हिस्से आई बिछड़न ।।-
कोई ख़फ़ा है मेरी सादगी से,
कोई ख़फ़ा है मेरी आवारगी से ।
मैं ख़फ़ा हूं उसकी खामोशी से,
वो ख़फ़ा है मेरी दीवानगी से ।।-
कुछ दिन और बगावत कर ले मुझसे मेरी जान,
जल्द छोड़ देंगे तेरा शहर तेरी गलियां तेरा गांव ।।-
ज़िद और अंहकार कि दीवार खड़ी कर दी उसने,
वरना उसे भी रूहानी मुहब्बत हो ही जाती हमसे ।।-
मेरे किरदार पर झूठे इल्ज़ाम लगा रही है वो,
कुछ इस तरह अपने झूठ छुपा रही है वो ।
बेपर्दा कर दूं उसे मेरे उसूलों में नहीं है यारों,
मेरी इसी शराफ़त का फायदा उठा रही है वो ।।-
झूठ बोलकर खिलखिला उठे वो,
मैंने सच कहा तो बिलबिला उठे वो ।
जिनके रिश्ते लबालब थे फरेब से,
आईना दिखाया तो तिलमिला उठे वो ।।-