मैं मौन तालाब हूँ,
और तुम एक जिज्ञासु बालक,
जो बार बार कंकड़ डाल कर
तरंगों को कौतूहल से देख रहा है।-
आंचल से बांधके गांठ , लाड़ो चली ससुराल।
छोड़ चली बाबुल की गलियां, ओढ़ चुनरिया लाल।
देखे सपने नवजीवन के , कौतूहल भी भय भी थोड़ा
हौले हौले रख कदम मंद गति से चले हंस की चाल ।
लाड़ो चली ससुराल........छोडके बाबुल की गलियाॅं
लाड़ो चली ससुराल.........
पीछे है बचपन सुहाना ,आगे भविष्य रहा अनजाना।
जननी के नैनों में आंसू , होंठों पै हैं आशीष संभाल ।
लाड़ो चली ससुराल...छोडके बाबुल की गलियाॅं
लाड़ो चली ससुराल...........
दादा की लाडली बिटिया,ताऊ चाचा जान छिड़कते।
माॅं बाप लेते हैं बलैया , प्रभु रखना इसको खुशहाल।
लाड़ो चली ससुराल....छोडके बाबुल की गलियाॅं
लाड़ो चली ससुराल........
ताई चाची बुआ और बहना , उदास है सारी सहेलियाॅं।
भाई भाभी लगे समझाने, त्यौहारों पर आना हर साल।
लाड़ो चली ससुराल...छोडके बाबुल की गलियाॅं
लाड़ो चली ससुराल........
मामा, मामी और नानी ,मौसियों की भी राजदुलारी ।
चल पड़ी पी की नगरिया ,आशीषों की 'सुधा' सौगात।
लाड़ो चली ससुराल....छोडके बाबुल की गलियाॅं
लाड़ो चली ससुराल.....
सुधा 'राज'
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वो वीर जवानी
लक्ष्मी मर्दानी
जैसे उतरी रण में ।
कुछ को काटा
कुछ को रौंदा
कुछ मारे गये कौतूहल में ।-
बंद दरवाजे ,छुपा है क्या
"कौतूहल" दस्तक़ देता था
जो है सब दिख गया,खुले पट
"भीतर " कोई नहीं आता-
सुना था कि किसी चित्रकारों के देश के
सबसे सधे हुए चित्रकार हो तुम।
तुम्हारी चित्रकारी को देखने के लिए
मैंने ईश्वर से दिव्य दृष्टि मांगी और बदले में सूरदास की भांति
बाकी नश्वर दुनिया को न देखने के लिए आंखें बंद कर ली।
उस वक्त तुम किसी चित्र को बनाना शुरू ही कर रहे थे;
मेरी बंद आंखों के कौतूहल को शांत करने के लिए
तुमने मुझे चित्र की रूपरेखा बताई कि
इसकी आंखें बिलकुल मेरी ही तरह एकटक देख रही हैं,
होंठ मानो कुछ कहना चाहते हैं लेकिन ख़ामोशी चुन रहे हैं,
चेहरे की हंसी तो मेरी हंसी की जुड़वा बहन लगती है।
मैं उत्सुक हो उठी आंखें खोलने को।
मगर आंखें खोलने के बाद मैं स्तब्ध रह गई;
चित्र में रंग सारे मेरे थे, पर चित्र मेरा न था।-
है वो थोड़ा नटखट, दिखाता है वो करतब
इरादे उसके डगमग, जरा सा वो अड़ीयल
दौड़ता है वो सरपट, करता है बातें पट-पट
देखता है वो टम-टम, भर आंखों में कौतूहल
सोचे वो एकटक, बस कारों की रहे जमघट
उड़ जाए वो फर-फर, करे इंतजार वो पल-पल
है ये उसका बालपन, जरा सा है वो मुंहफट
मां सोचे हरदम, रहे उसका भविष्य उज्जवल-
जिज्ञासा है क्या
एक कौतूहल या उत्सुकता
जानने की एक तीव्र इच्छा
यही है इस जग का आधार
यही जीवन का सम्पूर्ण सार
नित नए सृजन की आशा
जागृत करे मन की जिज्ञासा!!-
हाहाकार मच जाए
सब सही हो जाए
दिल की बात पहुंचाने में आसानी हो जाए
बच्चे अपने बूढ़े माँ बाप की पीड़ा समझने लगें
प्रेमी प्रेमिका एक दूजे की धड़कन सुनने लगें
पति-पत्नी के बिगड़ते रिश्ते सुधरने लगे
बच्चों के मन में उठ रहे कौतुहल माँ बाप समझने लगें
पेड़-पौधों,जानवरों की वेदना इंसान समझने लगे
कोई किसी को सताए ना
कोई किसी को तड़पाये ना
लड़कियों से दुष्कर्म होए ना
हर कोई एक दूसरे का दर्द महसूस करने लगे
काश ऐसा हो
दर्द बोलने लगे-