कूची है
कैनवास है
मगर रंग नहीं
कलम है
कागज है
मगर शब्द नहीं
मैं हूँ
तुम हो
मगर प्रेम नहीं-
लगता है आसमान पर भी हो रही तैयारी है
भाग रहे बादल देखो, रवि के हाथ पिचकारी है-
जाने किस कूची से रविकर ने रंग बिखेरा
रंग भर दिया बादलों में होलिकोत्सव सरीखा-
डूबते सूरज के रंग को घोल कर
क्षितिज में एक कूची डुबोकर
एक तस्वीर यूँ बनानी है आज
उस जग के रंगरेज़ सा
एक अनूठा चित्र रचना है आज।-
तितलियाँ सारी .. कूँची हैं
ईश्वर के सृष्टि रूपी कैनवास की
रंग बिरंगी-
लेकर कूची बैठ गये हम
हर रंग में खुद को रंग डाला
काश किसी रंग में तेरे जैसे हो जाये हम-
खुद को हर रंग में रंगा तेरे जैसा हो जाने को
अपना रंग भी खो बैठा तेरी इक झलक पाने को
-
मेरी बेटी ,, समृद्धि 💖
10 साल पहले की कुछ यादें जो आज उसके जन्मदिन
पर याद आ गयी-
मैं निरर्थक कैनवस ख़ाली-सा हूं,
मुझको कोई अर्थ तो देना ज़रा।
मुझको रंगने के लिए, ओ चित्रकार!
प्यार की कूची उठा लेना ज़रा।
(दिनेश दधीचि)-
खट्ठे मीठे अरमानों के साएं में,
ये कलम भी गुलाबी हो चली है..
तेरे इश्क़ का कैसा ये असर है,
कूची मेरी इन्कलाबी हो चली है.!-