एक कुत्ते की कहानी
उसी की ज़ुबानी..
(पूरी व्यंग्य रचना अनुशीर्षक में पढ़ें)-
वक़्त बड़ी कुत्ती चीज़ है साहब
जो कभी शेर तो कभी कुत्ता बना देता हैं-
कै निदरहुँ कै आदरहुँ सिंघहि स्वान सिआर
हरष बिषाद न केसरिहि कुंजर गंजनिहार
[ स्वान (कुत्ते) और सिआर सिंह का निरादर करें, चाहे आदर करें, कुंजर (हाथी) को पिछाड़ने वाले केसरी (सिंह) को इसमें कोई हर्ष या शोक नहीं होता ]-
ले ली है तलाशी आज अपने ज़ेहन की,
ख़ुद को कुत्ते की तरह सूँघना लाज़मी है-
हाँ, मै कुत्ता हूँ पर तुमसे तो अच्छा हूँ।
तुम इंसान होकर भी मूर्ख और गवाँर हो, मै जानवर होकर भी बेह्द समझदार हूँ।
तुम मुझपर करते कितना अत्याचार हो फिर भी मै तुम्हारे घर का पहरेदार हूँ।
तुम अच्छे भोजन का भी करते तिरस्कार हो मै सूखी रोटी खाने को भी रहता तैयार हूँ।
तुम अपनों के ही पीठ पे करते वार हो, मै गैरों से भी करता प्यार हूँ।
तुम प्यार पाकर भी ग़द्दार हो, मै मार खाकर भी ईमानदार हूँ।
एक चोट तुम्हें लगे तो मै करता तुम्हें दुलार हूँ और गर मुझे लगे तो मै हो जाता बेकार हूँ।
तुम धोखेबाज़ तथा मक्कार हो, मै तो जन्मजात वफादार हूँ।
तुम असंतुष्टि तथा अहंकार के भरमार हो इसीलिए तुम्हारी मै निंदा करता बार-बार हूँ।
बस यही कारण है कि आज मै कह रहा हूँ - हाँ, मै कुत्ता हूँ पर तुमसे तो अच्छा हूँ।-
मेन रोड की बायीं तरफ़
शुरू होती एक गली
का पहला मकान,
भव्य, आलीशान।
जहाँ साल की हर बारिश में
भीगता है एक कुत्ता।
डॉक्टर बंसल का पालतू कुत्ता।
ये छिप नहीं सकता
गली के बाक़ी कुत्तों की तरह
रोड की दायीं तरफ़ खड़ी
ट्रकों के नीचे, या
सोनू की दुकान के पीछे,
जहाँ पर लगा है
एक पीला तिरपाल।
डॉक्टर बंसल के इस कुत्ते में
तुम देखते हो किसान,
एक मध्यवर्गीय इंसान।
और मैं....मैं देखती हूँ
भीगता लोकतंत्र।-
मैं भी जाग रहा हूँ
गली के कुत्ते सा
वो भौंक कर
जगा रहा है लोगों को
और मैं लिख कर।
फर्क बस इतना है
उसे कुत्ता कहने पर
वो काटने नहीं दौड़ेगा।-
हिन्दू भी सो गया..
मुस्लमान भी सो गया..
जब नीन्द और थकान ने घेरा,
तो दिन तक जिसे दुत्कारते थे..
वो कुत्ता भी साथ में सो गया।
- साकेत गर्ग-