अस्तित्व मेरा या तुम्हारा...
कब मिट जाए क्या पता...??
वक्त के पहियों तले...
कब कौन कुचल जाए क्या पता...??-
वो तुम्हें वहाँ मारता है
जहाँ तुम्हें आज तक किसी ने नहीं मारा
वो तुम्हें वहाँ से तोड़ देता है
जहाँ से तुम आज तक नहीं टूटे थे
वो तुम्हारे सपनों को कुचल देता है
और तुम्हारे वजूद को खा जाता है
वो...
वो 'इश्क़' है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
धीरे धीरे झूठ को सच में बदल दिया
हकीकत के पैरों तले ख़्वाबों को कुचल दिया-
हर हसीना के ग़मों से निकल कर देखा
इश्क़ हमनें इस तरह भी बदल कर देखा
ख़्वाहिशों को छोड़कर हर किसी को चाहा
हर किसी के फूल को फिर कुचल कर देखा
हो गए मशहूर आशिक़ मगर फिर भी हम
ज़िन्दगी में हमनें कितना सँभल कर देखा
दर्द-ए-दिल के बाद अपना नहीं कोई अब
हँसते-हँसते भी ज़हर को निगल कर देखा
अब मोहब्बत खो गई फिर कहीं 'आरिफ़'
जाते-जाते तक सभी से पिघल कर देखा-
महफूज,,हम कहाँ है आखिर,
ये सवाल,
हर पल, एक परछाई बनकर,
साथ-साथ चलता है,
न घर में,न आसमां में,
न जाने हम कहाँ है महफूज,
जहाँ भी जाते है,
कुचल दिए जाते है,
वो बच्चे बन जाते है,
और हम उनका,
पसंदीदा खिलौना बन जाते है।-
बात बात में
जुबान खोलता है
कुचल डालो इसे
कि ये सच बोलता है..-