शहर में धुल धक्कड से बचना पड़ता है
खेत के किचड़ो में भी अच्छा लगता है
नरकट के क़लम से कलाकारी करना
राह चलती बैलगाड़ी पे चढ़ना
खुले असमां के नीचे छत पे सोना
मलँग सितारों की दुनिया में खोना
साइकल पे सवार और आटे चक्की की महक
नल का पानी और चिड़ियों की चहक
बरगद के नीचे खाट बिछाये
घड़ी दोपहर भी रास आये
माना सड़क कच्ची है
पर क़ाफ़िलों का शोर नहीं है
गाँव को, गाँव ही रहने दो..।-
Lighted the cigarette
With the spark of some thoughts..
Love, Life, Dream, Career,
With the diminishing of cigarette,
thoughts are getting blur.
At the end
they gets trample.. like the cigarette-
दुनियाँ की सब रस्मों-रिवज़ बेफ़िज़ूल हैं
चलो निकाह कर लें, क़बूल है?... क़बूल है..।-
ओस की एक बूँद
हवा में झूलते चली आयी
बालकनी में मैं खड़ा एक टक
आसमान को निहार रहा था
वो सहमी सी, हथेली पे बैठ जाती है
मैं उसे देख रहा और वो मुझे,
वो कह रही है समेट लो मुझे
पिघलने से पहले....।-
सर्दी भी थी शर्मायी
तू नीले सूट में आई
फिर नज़रे जो मिलाई
हाए, इस दिल की थी तबाही
देखा नही तुझे अरसो से
बात नही अब बरसो से
खोये हुए तेरे चर्चो से है कहाँ
पहाड़ो में मेरा बसेरा है
गले में ये मफ्लर तेरा है
आके तू इसको आधा ओढ़ जा
- DRP-
समय की इस मजधार में हम सब खेवैया हैं
एक ना एक दिन हम सब थक हार के
पतवार घुमाना बंद कर देंगे
और हमेशा के लिये मौन हो कर डूब जाएँगे-
दोनो बहने कभी एक साथ खेली होंगी, लड़ी होंगी,
घूमीं होंगी, घंटो भर बैठ बात की होंगी
पर अब दोनो बड़ी हो गयीं हैं
सज धज के अपना देश छोड़ किसी दूसरे देश चली जायेंगी ।
वक़्त बीता, पहर बीत
लेकिन सफ़र का कुछ हिस्सा बाक़ी है
बड़ी बहन बिस्तर पर लेटी है छोटी आकर सिरहाने बैठी,
चसमा उतार अपने आँसु पोंछ फिर से निहारने लगी है
कुछ वक़्त फिर साथ बैठेंगी,... बिलकुल मौन
और एक बहन साज़ बाज से, फिर 'अपने देश'.... चली जाएगी !
जैसे वक़्त नहीं रुकता गुज़र जाता है
वैसे यहाँ ठहरे सभी गुज़र जायेंगे... वक़्त की तरह-
कभी कभी कुछ तो, कहो पिया हमसे
ए कम-से-कम आज तो खुल के मिलो ज़रा हमसे
है रात अपनी, जो तुम हो अपने
किसी का फिर हमें डर क्या
-मजरूह सुल्तानपुरी-
तुम्हारी बात है
हो दिन या रात ये
एक तुम ही नहीं होती हो...
बिन नींदो की रातें
कुछ अनकही बातें
तुम जाने नहीं देती हो-