जाने कौन कम्बख़्त रातों में,
पीपल के पेड़ से चाँद तोड़ ले जाता है,
कल से जुगनुओं का पहरा रखूँगा..
जाने कौन कम्बख़्त आँखों में,
तेरे यादों के दरिया से कुछ ख़्वाब ले आता है,
कल से नैनों की कुंडी चढ़ा कर रखूँगा..-
मन के दरवाज़े पर जैसे ही एक आहट हुई ;
तुम्हारी दस्तक समझ हमने भी अंदर आने
की इजाज़त दे दी !!
पर हर बार की तरह जब इस बार भी हाथ
निराशा ही थी लगी ;
तो हमने भी सोच लिया कि अब ना जाएंगे
इस गली और बंद कर दी इस कमबख़्त दिल
के दरवाज़े की कड़ी !!
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कुंडी बंद करने से पहले।
इतना सोच लो जनाब,
दरवाजे में दोनों तरफ कुंडी होती है।
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सब दायरे बंधन समाज के
लांघ आये हैं
आज ज़माने से अकड़ कर
माँग आये हैं
तुम क़ुबूल करो या न करो
मुझे क्या है
तेरे घर की कुंडी पर गुलाब
टाँग आये हैं
© सचिन गोयल
सोनीपत हरियाणा
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एक कड़ी ही तो थी,
किसी की जुड़ गई,
किसी की बिखर गई,
कोई बिखरकर बेघर हो गया,
किसी की बिखरकर भूखा रह गया,
कड़ी ही तो है।
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कंयूँ ना उड़ेल दूँ कविता की कुंडी
की भर जाए तेरा भी दिल
और मुझको भी ना लगे
की प्यासे की प्यास ना बुझी
और आँख से झलक जाए
तो मेरी भी प्यास बूझ जाए-
अच्छा लगता है मुझे तुम्हारा आना
हौले से दिल की कुंडी खड़का जाना।।-
अगर कोई आपके massege का जवाब
नही देता है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है
कुंडी दरवाजे के दोनों तरफ लगती है यार-