।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।
।। सीताराम ।।-
एक सवाल ?
अगर तुम्हें गर्भ में पता चलता,
जिस घर में तुम होने वाले हो
नमाज़ नहीं पढ़ता
वहाँ कोई यज्ञ होम
कीर्तन नहीं होता
तब तुम क्या करते
क्या माँ बदलते?
~ कैलाश वाजपेयी-
मिश्री को भोग लगाऊं
हीरें मोती का
हार पहनाऊं
दिल में बसी हे
छवि तेरी
उस छवि को
कीर्तन सुनाऊं
सुध-बुध खो रहा हूँ
हरी मिलन को
उत्सुक हो रहा हूँ
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तू तू ना रहो मैं मैं ना रहूं,
मिटा कर अपनी हस्ती नयी पहचान हम बने।
अबकी नवरात्र चलो साथी मैया का श्रृंगार बने,
तू रेशमी चुनर मैं गोटा मैया का घुघंटा हम ।
तू धागा मैं फूल चलो साथी मैया के हार बने,
तू रंग मैं पानी मैया का आलता हम।
तू लाह मैं मोती चलो साथी मैया के चूड़ा बने,
तू रूपा मै खनक मैया के घुंघरू हम।
तू सितार मै तार चलो साथी मैया के कीर्तन बने,
तू राग मैं स्वर मैया के भजन हम।
तू हलवा मैं पूरी चलो साथी मैया के भोग बने,
तू माखन मै मिश्री मैया के बतासा हम।
तू कुंड मै हवन चलो साथी मैया के यज्ञ अनुष्ठान बने,
तू कंचन थाल मैं कपूर की बाती मैया के आरती हम।
तू तू न रहे मैं मैं ना रहूं
मिटाकर अपनी हस्ती नयी पहचान हम बने
__ Sunita Barnwal 🌹🌹
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पूजन,कीर्तन बहुत किया पर
माया मरी न, "मैं" मर सका ।
कृष्ण कृपा कुछ ऐसी कर दो
माया छूटे , "मैं" मर जाये ।।-
कभी-कभी लगता है
मै बहुत बेशरम-सा हो गया हूँ।
सारा दिन लड़कियों के बारे मे
सोचता रहता हूँ।
कभी-कभी मन ये भी करता है की
किसी भी लड़की से बात ना करूँ।
किसी एकांत सी जगह जाकर
भजन कीर्तन करने लगूं।
फ़िर ख़्याल आता है, की
उसके लिए भी तो साथ मे
कोई लड़की होनी चाहिए।
वो गाए, मै तबला बजाऊं।
मै गाऊँ, वो सितार बजाय।
अब अकेले अकेले भजन कीर्तन करते
मैं अच्छा थोड़ा लगूंगां।
#कभी-कभी-
कीर्तन जब करता है मन , आध्यात्मिकता से भरता है मन।
हटा कर जड़ता का घनघोर अंधेरा , कीर्तन लाए एक नया सवेरा।।
हर कण कण में बसी सत्ता को , भजना ही कीर्तन कहलाए।।
साधना सहायकं बाबा नाम केवलम ,।
भक्त भगवान के बीच की दुरी , सतत अभ्यास से यही मिटाए।।
जड़ता और चेतनता का , गूढ़ राज भी यही बताए।
संञर प्रतिसंञर की धारा में, मनुज युगों से बहता आया।
कई योणियों के कष्ट झेल कर , मनुष्य ने जीवन दुर्लभ पाया।।
करना है जो सार्थक जीवन ,एक मात्र उपाय है कीर्तन।।
करना उसका हरपल चिंतन,जो सबके ही बंधु हैं।
जो हैं परम चेतना के सागर ,जो दया के सिंधु हैं।
कष्ट विदुरकमं ,बाबा नाम केवलम।।
मन को सूक्ष्म बना कर ही तो, भक्ति सागर में डूबेगा ये मन।
मंत्र अष्टाक्षरी यह कहलाए , परमार्थ को यह समझाए।।
क्या है प्राणी का लक्ष्य बताए, मानसिक व्याधियों को दूर हटाए।
ऊर्धमुखी चक्रो को कर दे , समर्पित भाव से करे जो कीर्तन।।
लालितमार्मिक ,नृत्य के संग, होता इसमें सम्पूर्ण समर्पण।
आनंद दयाकमं ,बाबा नाम केवलम।।-
एक बाप
अपने बच्चों के खातिर
झुकेगा और कितना
उखाड़ फेंकेगा
हर कांटे को
सोच के बाहर होगा
हद से नहीं होगा ईतना
धैर्य अब रखेगा तो
बुढ़ापे में नहीं कर
पाएगा कीर्तन भजन
मुक्ति मिले सोच के जितना....-
मंदिर दर्शन प्रभु किर्तन से वायरस का भय,? चिंतनीय, और मदिरालय की लंबी कतारों में वृद्धि ? निंदनीय
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