देखों कैसे जला कर,
कलेजा वो अपना,
चाय को बाहों में भरता हैं,
भला आज़कल कुल्हड़ वाला इश्क़,
कोई यहाँ किसी से करता हैं!!-
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े-
मैं बद तमीज़ ही सही मुझे न सिखाएं वह अदब ओ आदाब जो मीठी छूरियों से लोगों के कलेजे काटते हैं
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करना हैं मोहब्बत तो करो अपने माँ से
जो खुद से भी ज्यादें तुम पर ऐतबार किया,
तुम्हारे लिए हर गम सहा उसने और
९ महीने तक,अपने कलेजे से लगा कर तुम्हें प्यार किया|-
गलत के खिलाफ लड़ने के लिए,
बाजुओं मे ताकत हो न हो,
कलेजे में हिम्मत होनी ही चाहिए ।-
जुबानों से चले खंजर बड़े गम्भीर होते हैं
करें जब वार शब्दों के कलेजा चीर देते हैं-
कुछ कविताओं के
हृदय में जब पीर उठी
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कलेजा चीर के दिखा ही दिया
उस रोज़ कविताओं ने
सीने में रक्तिम स्याही की जगह
बस प्रेम ही प्रेम बह रहा था
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तब से वे प्रेम कविताएं ही
युगों तक गूंजती रही है
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जिनके कवियों को
कभी प्रेम हुआ ही नहीं-
पढ़ने की जब भी करती हूं कोशिश !
छलनी कर देती है कलेजा कलम की धार उसकी।-
"उलाहने" के लिए "भेजा"
और
"सराहने" के लिए "कलेजा"
ज़रूरी होता है।।
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"अरे यारों मिले हम उनसे ये ही खता थी हमारी
धीरे-धीरे बड़े प्यार से वो कलेजा निकाल ले गयी बेचारी.."-