आंखों में आसूं दिल में दर्द है
ये कैसा रोग ये कैसा मर्ज है
गमों से भरे सुन्दर कब्रिस्तान में
खुदा का मुझ पर ये कैसा कर्ज है।।-
एक कर्ज़ है "जिंदगी"
सर पे ब्याज है रिश्तों का
....चुकाने को एक उम्र मिली
पर वक्त मुक़र्रर है क़िस्तों का...!!-
कभी--कभी दुआ भी वापस आ जाती है...
जैसे किसी चीज का कर्ज न मिला हो उसे.....(1).
कभी--कभी रोशनी फीकी सी लगती है...
जैसे अंधेरो से रिश्ता बन गया हो.....(.2)
कभी--कभी लोग खुद को कुछ ज्यादे ही समझ लेते है,,दुसरो का एहसान भूलकर,,
जैसे इनके जैसा कोई महान है ही नही...
कभी--कभी जहर भी अमृत सा लगता है...
जैसे कड़वाहट मिठास में बदल गयी है...
What i m writting,, i do not know myself just got it written down😜😜
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सुबह में मंदिर जाकर हाथ जोड़ लिया ।
दिन में मस्जिद में भी शीश झुका लिया ।
वो दो दिनों से बहुत भूखा था न साहेब,
इसलिए हर मजहब का कर्ज चुका दिया ।-
दूध का कर्ज वो इस तरह चुकाता है
दुधारू गाय को ही वो घास खिलाता है-
अजनबियों के शहर पुराने,
हम कर्ज चुकाने आये हैं।।
भूले भटके मुसाफिरों को,
भूले भटके मुसाफिरों को,
हम राह दिखाने आये हैं।
अजनबियों के शहर पुराने,
हम कर्ज चुकाने आये हैं।।
कुछ अधूरे से सवालों के,
कुछ अधूरे से सवालों के,
हम जवाब ढूँढने आये हैं।
अजनबियों के शहर पुराने,
हम कर्ज चुकाने आये हैं।।
तुम अकेले हो गए हो तो,
तुम अकेले हो गए हो तो,
हम साथ निभाने आये हैं।।
अजनबियों के शहर पुराने,
हम कर्ज चुकाने आये हैं।।-
तेरी यादों का कर्ज है कि खत्म नहीं होता
वजूद ढल रहा है और सूद कम नहीं होता-
लोग ज़िन्दगी में आते है
सिर्फ कर्ज चुकाने के लिए,
उम्र भर जीते भी है
तो सिर्फ मौत को पाने के लिए।
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