जिस नींव पर टिके मेरे सभी धंधें हैं
वो कुछ और नहीं पिता जी के कंधे हैं।।-
शहर में दोस्तों संग वो "फादर्स डे" का जश्न मना रहा था ।
गाँव में एक बूढ़ा बाप
आज भी दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठा है ॥-
माँ बाप हैं वो रहबर जो मंज़िल हैं दिखाते ।
खुशनसीब हैं जो उनकी राह पे चल पाते ।
ज़िन्दगी जीने की हर बात बताते ।
दुख दर्द हर संकट से लड़ना सिखाते ।
नेक राह दिखा कर,
औलाद के अपने फर्ज़ को निभाते ।
माँ के पैरो तले स्वर्ग है।
बाप के कदमो के नीचे है इसका द्वार।
गुलजार रखोगे सदा उनके मन की बगिया ।
खिलेंगी गुलशन में खुशियों की कालियां ।
कर दो उनके आरजुओं को पूरा अभी ।
खुशियां तुम्हारी ही हैं मेरे यारा सभी ।
तुम भी उनसे हासिल करलो फैज़।
क्यों कि मिलते नहीं ऐसे रहबर दुबारा कभी।-
लफ्ज़ नहीं है आज
उन कंधों का शुक्रिया अदा करने के लिए......
जो मुझे उपर उठाने की मेहनत करते करते
खुद नीचे झुक गए...
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दर्द और भावनाओं को ताक में रखकर मैने उन्हे मेहनत करते देखा है
मेरे पिता ने खुद के कंधे पे चूल्हा रख पूरे परिवार की रोटी को सेका है-
बहुत हो गया भाग दौड़ ज़िन्दगी का
सारा किस्सा यहीं पर तमाम कीजिए
दुनिया से जी भर गया है "महबूब"
चार कंधो का अब इंतेज़ाम कीजिए-
मैंने हताशा में किसी के कंधे पर सर नहीं टिकाया,
कभी किसी के लगकर गले
दुख में रोया नहीं जार जार,
नहीं साझा कर पाया दुख में एक भी बात,
जरूरत के वक्त ना मांग सका मदद,
और मदद मांगते वक्त मोल ले बैठा
एक अपराधबोध..!!!
कईयों को यकीन है
कि मैं उनका दोस्त,
मेरा भी कोई दोस्त है,
मैं इतने यकीन से नहीं कह सकता..!!!-
जिनको नहीं मिलते हैं
…किसी के कंधे…
रोने के लिए,
…उनके कंधे पर
सुक़ूं से रो सकती है
…सारी दुनिया।-
राजनीति को बना दिया गया है धंधा
बन्दूकें माँग रहीं हर रोज़ नया कन्धा-
कंधों की ज़मीन तो कभी ज़मीन का कंधा
बस इतना ही तो है साँसों का धंधा-