QUOTES ON #ईर्ष्या

#ईर्ष्या quotes

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8 JUL 2019 AT 21:10

ईर्ष्या की आग में इतना मत जलो ,
कि राख बन जाओ
सुलगा कर आग जुनूनीयत की
बख़ूबी शोला कहलाओ।

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26 MAY 2021 AT 8:28

न पचा पाओगे वो निवाला,
जो दूसरों के मुँह से निकाला
धिक्कारता है वो कफ़न भी तुम्हे,
जो जीते जी, कई लाचारों को चढ़ाया

मुझे गिरा कर उठने वालों,
ये तुमने कैसा खेल रचाया
मेरे अरमानों की अर्थी पर,
अपने सपनो का महल बनाया

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1 JUL 2019 AT 19:43

द्वेष

कटी पतंग पर खूब मौज किया करते है लोग।
जब अपनी कटती है तब खुद ही जलते हैं लोग।।

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4 DEC 2021 AT 9:34

क्या लिखा है ये कोई नही जानता लेकिन फिर भी लोग खुद की खुशी को छोड़कर दूसरो की खुशी से जलते है।

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16 JAN 2021 AT 18:05

मकड़ियां बुनती है जाल
चिह्न लगाती है,एक निश्चित भाग पर
देती हैं जिसे "घर" का नाम
वो घात लगा कर बैठती हैं,
उन्हें नहीं स्वीकार्य, कोई "अतिथि"
जो परिधि की सीमा लांघ कर
आ पहुंचा हो भीतर।
क्रोधवश कर प्रहार, झट करती हैं, शिकार
इस प्रकार खाद्य श्रृंखला चलती रहती है
इससे उदर पूर्ति होती रहती है
विज्ञान देता है, इसे मकड़ियों की प्रकृति का नाम

मैं भी तुम्हारे चारो ओर
घेर देना चाहती हूं, एक घेरा
तुम्हें कैद कर लेना चाहती हूं
स्वयं के हृदय की परिधि के भीतर
तुम पर अंकित कर देना चाहती हूं
मेरी काजल का चिह्न
इस प्रकार सुनिश्चित करना चाहती हूं
मेरा स्थाई निवास, सदैव-सदैव के लिए
तुम्हारे हृदय के सीमा क्षेत्र में

तुम मेरे इस प्रेम को "ईर्ष्या" का नाम देते हो
और, मैं....प्रेम की प्रगाढ़ता से उपजे हुए "भय" का।

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6 OCT 2020 AT 22:14

ईर्ष्या है अगन ऐसी, जिसमें औरों से पहले खुद सुलगते हैं।
किसी और के गुनाहों की सजा, बेमतलब हम भुगतते हैं।।

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28 JUL 2020 AT 13:20

सुनो,
इतना भी मत जलों हमसे
वायु प्रदूषण बढ़ जाएगा

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4 JUL 2017 AT 18:05

यहां जलती नफरतों की बाल्टियां उड़ेलते हैं लोग,
अब तुम्हारी गुनगुनी नफरतों का प्याला ठंडा मालूम होता है..

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29 AUG 2017 AT 10:23

"ईर्ष्या"
जब हम खुद से संतुष्ट नहीं होते,
ईर्ष्या तभी हमारे करीब आती...

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मैख़ाना यूँ हीं बदनाम साहब, पाक उल्फ़त न किसी इंसान से है,
मुसाफ़िर बन गली में विचरते, आज़िज़ बहुमुखी हैवान से है।

विवशता का कोई प्रश्न नहीं, मज़हब न मज़हबी पहचान से है,
नाराज़गी तो मात्र हिज़ाब के पीछे, विष भरे मधुर इंसान से है।

नज़ाकत निष्ठा का भाव नहीं, तिश्रगी कब करें मनुज अपमान से है,
स्पर्धा की ज्वलंत ज्वाला को जला, जय तो स्वयं श्रेष्ठ सम्मान से है।

ज़ख्म देतेे हैं चहु ओर यहाँ, मृत इंसानियत मिटा रहमान से है,
ईश्वर का भी नहीं भय किसी को, जब अंत भी श्मशान से है।

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