मन उलझन में है जाने कौन ?
कब हर्षित से व्यथित हो जाये, इस हृदय भाव को जाने कौन ?
कब क्या सोचे, कब चाह किसी की, इस मन को पहचाने कौन ?
सागर जैसी गहराई इसमें, क्या छिपा रखा है जाने कौन ?
मैं ना जानूँ क्या राज हैं इसके, कोई होगा पहचाने कौन ?
घिरी हुई मैं जन मानस से, क्यों मन तन्हा है जाने कौन ?
एकांतवास, क्यों द्वंद मचा है, परिणाम प्रलय पहचाने कौन ?
गिरते अश्रु की एक बूँद में, मिश्रित पीड़ा क्या जाने कौन ?
मन घबराया, और छलक गयें, व्याकुलता को पहचाने कौन ?
हर सुबह नई उम्मीद की आशा, हो जाती धूमिल जाने कौन ?
सब खोकर भी आशान्वित मन के, नीरसता को पहचाने कौन ?
जब हिय में उफ़ान मचा हो, तब करुण भाव को जाने कौन ?
सब स्वप्न भस्म, शमशान बचे, तब व्यथा राख की जाने कौन ?
-मृणालिनी
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