सारे इल्जाम हम पर डालते हो,
एक दफा आईना भी झांक लो!-
मुश्किल बस इतनी हैं हमें.....
जताना नही आता,
इल्जाम ये लगा है कि हमे,
निभाना नही आता....!!!-
यूं हद मे रहकर
हमने तुम्हे बेहद चाहा था
यूं इल्जाम ना लगा हम तुम्हारे
जज्बातों के कातिल थे...
अरे हम तो उस उम्र से तुम्हे चाहते है
जिस उम्र में हम जिस्म से वाकिफ ना थे-
कुछ यादें हैं जो जिंदा नहीं रहने देती हैं मुझको
कुछ इल्जाम है जो मुझे मरने नहीं देते-
सब औरों से नही
यहां ख़ुद से हारे हैं
फर्क इतना सा है गुनाह ख़ुद कर
इलज़ाम दूसरों पर वारें हैं-
दूसरों में कमियां निकालना भूल जाएंगे लोग,
अगर तोहफे में उनको आईना दे दिया जाए _-
तांका झांकी मे रक्खा है क्या
रोज रोज झांके क्या आये मजा
कब तक मैं खुद को सम्भालूंगी
रोज रोज झांके रे खिडक़ी से कया
आजा पिक्चर से पर्दा हटा लूंगी-
भाग रहा हूं खुद से फ़क़त बेजा़री है
अब तो सारा इल्जा़म मुकद्दर पर ज़ारी है-
जो कभी हुआँ ही नहीं उसका
इल्जाम लगा है मुझ पर
क्या करूँ इश्क़ में था ,
बादनामियाँ लिखा गया मुझ पर...💔
रौशन...✍️-
जरुरत नही हैं किसी को आइना देने की
या दिखाने की,
बस ख़ुद को संवार लो खुद की नज़रों मे
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