Shomi Shomita  
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Joined 23 February 2020


Joined 23 February 2020
26 MAY AT 0:10

कर्मपथ पर अग्रसर *कृष्ण*
भेदभाव ऊंचनीच अहंकार क्रोध त्याग
शांतचित्त सरल सहज छवि
प्रेम थामे चले कर्तव्यपथ पर

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25 MAY AT 23:50

कितनी सुंदर सरल सहज हो तुम और यही तुम्हारा श्रृंगार है
तुम्हारे हाथों की चूड़ियों में मेरा प्रेम छनकेगा
मेरा विश्वास चमकेगा तुम्हारे चेहरे का नूर बनके देखना तुम

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24 MAY AT 0:21

कह दो जो तुम्हें कहना है
के ये पल बस यहीं थम जाएं
पहले आप पहले आप की कशमकश में
यह वक्त यूं ही ना निकल जाए

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22 MAY AT 16:26

इक राह की आदत हो गई मुझे
उसकी दिक्कतों से चाहत हो गई मुझे
उसने कहा बेवफा हूं मैं भूल जा मुझे
किस तरह भूल जाऊं उसे
बेवफाई में ही राहत हो गई मुझे

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19 MAY AT 0:02

बस हो हाथों में हाथ ना शिकवे ना शिकायतें
उदास शामों में खामोशियां पढ़ने का साथ

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18 APR AT 14:22

कभी उलझो मेरी उलझनो में कभी खिल खिलाओ मेरी हंसी में कभी भीग जाओ मेरे प्रेम की नमी में कभी कहो सुनो बेतुकी सी बातें, सुकून इस के सिवा है ही क्या

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18 APR AT 14:04

वक़्त ठहर जाता है तुम्हारे करीब होने से
हर फिक्र हर उलझन सुलझ जाती है तुम्हारे मुस्कुराने से

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17 APR AT 0:32

तेरी यादों की खुशबू महकाती है मुझे
यह रात तारे ये जुगनू तेरे किस्से सुनाते है मुझे
तू है नहीं पर शामिल है मेरी धड़कनों में
यह दूरियां यह खामोशियां तेरे और करीब ले आती हैं मुझे

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15 APR AT 14:21

कुछ एहसास खामोशियों में बसर करते हैं
गुलाब भी तुम्हारे लबों को छूने को तरसते हैं

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1 APR AT 19:23

कुछ कदम साथ चलते चलते
कभी कभी जी किया
मुठ्ठी भर छाया पकड़ लूं उसकी
कौन क्या बदल सकता है भला
पर प्रेम तो कर सकता है न
कोई करे न करे
प्रेम नही जानता ये जातपात धर्म
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा
सब पर माथा टेक आता है
सिर्फ प्रेम पाने की चाहत में
प्रेम आवारा नही पर चांद की तरह
चाहत में घूमे है गली गली
हर ठौर ठिकाने
पुरानी इमारतें पुरानी इबारतों में
गहन तजुर्बे बांचता
प्रेम कभी मंजिल नहीं पाता
बिसुरता है भीतर ही भीतर

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