चाँद थी तू इस घर की,
ये परिवार भी सजता तुम्हीं से था,
तेरी मुस्कान से खिलता था गुलाब मेरे आँगन का,
चाँद थी तू इस घर की,
ये घर-संसार भी रोशन तुझसे था.
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सबकी बातों को अनसुना करके उसने मेरा साथ दिया,
मेरे प्रति दूसरों के बुरे नजरिये को नकाराते हुए उसने मुझे
सहनशीलता का आधार दिया.
मेरी कामियों को स्वीकारते हुए उसने मुझे एक छोटे बच्चे सा
लाड किया, दुनियाँ ने धित्तकारा मुझें और
अभद्र शब्दों से मुझ पर प्रहार किया
फिर भी उसने मुझे अपने सीने से लगा के प्यार किया.
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कमी तो मुझमें पहले भी थी और आज भी है
फर्क सिर्फ इतना सा है की पहले लोग मेरी कमियों से प्यार करते थें
अब लोग मेरी कमियों से नफ़रत करते हैं.-
लिखती हूँ मै अपना हर एक भाव
पीरोती हूँ मैं शब्दों से अपना हर एक दर्द
संजो के रखा है मैंने अपनी बीती कल की हर एक तकलीफ को
तोड़ दूंगी पिटारा अपनी सहनशक्ति का एक दिन,
औरत हूँ मै!
अगर चाँद सी शीलता है मुझमें
तो सूरज सी तपन भी -Sushma pal
मै चाहूं तो सवार दूँ घर -आँगन तुम्हारा
मैं चाहूं तो बिखेर दू घर-संसार तुम्हारा
औरत हूँ मै....
संजो के रखा है मैंने अपनी बीती कल की हर एक तकलीफ को.
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सर पर पल्लू रखना ही संस्कार नही होता
बल्कि मर्यादा को आत्मसात करना ही हमारा संस्कार होता है.
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दुख भी वही देता है
सुकूँ भी वही देता है
मेरा भण्डारी तो मतवाला है
झोली भर के देता है.-
ये कभी मत सोचना की एक औरत,
एक औरत की गलती छिपा लेगी,
बल्कि गलती न होने पर भी एक औरत
एक औरत को बदनाम करती है.
कभी औरत जात पर भरोसा मत करना
औरत सिर्फ माँ रूप मे दयावान होती है
बाकि तो सब ढोंग - प्रपंच है.
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हम थक चुके है लोगो से, लोगो के बड़े-बड़े झूठ से
जो मेरे लिए बोले जाते है, पता नही क्यों लोग अपनी गलती छुपाने के लिए मुझे अपने गंदे झूठ मे शामिल करते हैं -Sushma pal
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ लेकिन कहुँ किससे!
उन लोगो से जो बेवजह मुझ पर चोरी-छिपे आरोप लगाते हैं,
अंदर इनता शोर और इतनी खलबली है की लगता है
सर फट जायेगा, मुझसे झूठ नही सहा जाता 😔😔
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