तुम्हारे लिए खुद को बदलने से,,,
अभी तो तुम खुश हो जाओगे...
मगर ,कुछ साल बाद यही बदलाव देख के,,,
अजनबी होने का इल्ज़ाम लगाओगे...-
गुनाहों की दुनिया में कुछ इस तरह गुनाह कर बैठे
उनके नाम के साथ हम अपना नाम लगा बैठे
कलम-ए-इश्क की स्याही से लिखी मोहब्बत अपनी
कैदखाने तेरे निगाहों के खुद पर इल्ज़ाम लगा बैठे।।-
"किस बात की सजा है ये"
बेनाम क्यूँ है मेरा रिश्ता, अब इसे कोई नाम तो दो।
फिर रहा हूँ मैं यूँ दरबदर, मुझे कोई मकाम तो दो।
मेरे इश्क के नसीब में, साहिल मिलना ही नहीं शायद
मझधार ये वाजिब नहीं, अच्छा या बुरा अंजाम तो दो।
पलकें बिछाये बैठा है दिल मेरा, तुम्हारे इंतज़ार में
नहीं आना मेरी गली तो भी सही, पर पैग़ाम तो दो।
हिस्सा तो हम भी थे, तुम्हारा इश्क पानें की होड़ का
माना कि जीते नहीं, पर तसल्ली वाला ईनाम तो दो।
मुकर्रर किया है तुमने, चलो कबूल करते हैं हम
किस बात की सजा है, अरे कोई इल्जाम तो दो।
दिल मेरा बच्चा है अभी, नादानियाँ करने लगा है
हम भी मिसाल बनें प्यार के, ऐसा आयाम तो दो।-
इल्जाम लगा दो लाख चाहे,
लेकिन सच तुम खुद निगल नही पाती।
अगर उस दिन मैं छू देता तो,
फिर तुम आज इस कदर जल नही पाती।
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मुझे मालुम है उस ने मेरा होना नहीं लेकिन,
मेरी उम्मीद मत तोड़ो मुझे पुरजोश रहने दो..!
मोहब्बत जुर्म है मेरा मुझे इकरार है इसका,
वफ़ा इल्जाम है तो फिर मेरे सिर दोष रहने दो..!
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अफवाहों में विश्वास करके ग़लत इल्जाम लगा रहे हो,
सोचो तो सहीं झूठा बनाकर ,तुम हमें खोते जा रहे हो।-
मुश्किल इतनी है कि हमें जताना नहीं आता
इल्जाम ये लगा है कि हमें निभाना नहीं आता-
कुछ अल्फाज कहे नही जाते,
कुछ इल्जाम दिए नही जाते,
दुनिया का दस्तूर है,
कभी-कभी बिना कुछ किये ही ,
इल्जाम है दिए जाते।
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इल्जाम अभी कुछ लगने हैं
कुछ लीपापोती होनी है
सामान अभी कुछ बंटने हैं
कुछ छीना-झपटी होनी है
कुछ नन्हें तारे टूटे हैं अम्बर से
अभी उनकी शिनाख़्त होनी है
कुछ हत्यारे लिपटे हैं खंजर से
अभी उनपे सियासत होनी है-
वो बेवजह ही मुझको मान देता गया,
खुद गुमनाम था मुझे नाम देता गया,
मेरे आईने से तस्वीर उसने मेरी मांगी
और बिना जाने मुझे अरमान देता गया,
भटकता रहा खुद वो दरबदर बेखबर
घरौंदा नहीं पर मुझको क़याम देता गया,
मेरी नाकामियाँ रखी सदा अपने सर और
रुसवाइयों का खुद को इल्ज़ाम देता गया,
मेरा बुरा वक्त मुझे छोड़ता ही नहीं तन्हा
अच्छे दिनों का वो एहतमाम देता गया !-