अपनों पर शक का कोई इलाज नहीं,
और गैरों पर अपने हक़ का कोई हिसाब नहीं।-
दिल टूटने का शोर क्या होता है ये तुम्हे कैसे पता होगा तुम तो इस के बादशाह हो अंदर एक ख़ामोशी सी हो जाती है जिसका कोई इलाज नहीं है......🔥
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मैं मरीज-ए-इश्क हूं
मुझे क्या गर्ज हकीमो से
अगर चाहो मेरी हिचकियों का इलाज
तो पास मेरे.....
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हर एक शब्द अल्फाज छोड़ता है,
बेईमान इंसान हिसाब छोड़ता है।
दस्तक देती है मुफलिसी जब दरवाजे पर,
हर एक शाहजहां मुमताज छोड़ता है।
सम्पूर्ण कविता अनुशीर्षक में-
तुझे सोच कर मुस्कुराना, मुस्कुरा कर सोचना तुझे,
बस है यही मर्ज़ मेरा, मेरा इलाज़ यही है बस..-
मर्ज-ए-इश्क़ दुरुस्त हो रहा, इलाज-ए-वक्त से जज्बात!
शफ़ाए गर महँगी न होती, तो रूबरू हम भी हो जाते!!-
दर्द-ए-ज़िन्दगी का इलाज होने लगा है
मेरा यार अब मेरा चारागर होने लगा है
- साकेत गर्ग-
सुना है बीमारी का कोई इलाज नही,
दवाइयां और अस्पताल भी महंगे है।
मेरे शहर में,
कामाल है साहब जान ही एक,
सबसे सस्ती चीज है आज।-
है न किसी खबरदार को याद में बसा लीजिए..
आ गया जो उस कमबख्त पर दिल तो क्या कीजिए...-
हक़ीम नहीं फिर भी इलाज़ करता हूँ
मैं वो बंदा हूँ जो ख़ुद पर राज करता हूँ।-