बड़ी जल्दी ऊब जाता हूँ खुद से
फिर तेरी यादों को इकट्ठा कर लेता हूँ
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जीवन जीने के लिये जो चाहिये
वो प्रकृति दे रही है।
आप जो इकट्ठा कर रहें हैं
वो जीवन गँवाने के लिये है।-
✨......उन दिनों के सैर की वार्ताएंँ✨
परिदृश्य: २ मित्र, जो स्नातक के बाद voice process/telecalling job के लिए अपने
लक्ष्य की ओर रूख करने से पूर्व, घर लौटते वक्त संक्षिप्त वार्तालाप करते हैं। उन्हें पता है
इस job के लिए communication skill अच्छी होनी चाहिए।.....
✍️प्रथम मित्र...... (अपनी प्रशंसा एवं अफसोस जाहिर करते हुए):
अतिउत्सुक, सस्नेह अक़िल!
जब बन वाचाल, किया मुश्किल,✨
तो भयभीत होकर मेरा दिल,
अब ताक रहा पाने मंजिल।✨
✍️द्वितीय मित्र:
मझधार में स्थित नैया
लावारिश वहीं मुहैया।✨
न तर्क न ज्यादा फर्क
कभी हरकतें कभी सतर्क।✨
✍️प्रथम मित्र:
कल कल, छल छल, हर क्षण, हर पल
उन्नत ध्वनि अपार।✨
बहुत सीखाती है ये सरिता
अद्भुत है संसार।✨
वात कुशल हों दोनों क्यों न
बन जाएँ औजार।✨ ........✍️भावार्थ CAPTION में पढ़िए-
गए वो दिन जब कंचे इकट्ठा करने की होड़ लगी रहती थी,
अब तो नोट इकट्ठा करने से ज़माने को फ़ुर्सत ही कहाँ।-
खुद को इकट्ठा करना होता हैं,
बहुत सोच समझ के निर्णय लेना होता हैं।-
बिखर के भी
बेहद
खूबसूरत हूं मैं
जो ना सिमट
सको तुम मुझे
तो
कोई ग़म नहीं-
अभी इकट्ठा कर रहा उसे, लिखकर
बड़े आराम से बुढ़ापे में पढ़ने के लिए..।।
© अर्पित मिसरा
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जितना ज्यादा कुछ इकट्ठा करता हूं मैं
उतना ज्यादा उसे खोने से डरता हूं मैं-
कभी सोचा ना था कि आखिर एक दिन तुम भी
उस भीड़ का इकठ्ठा बन जावोगे जिनका फोन
में होना या ना होना कोई मांयने नही रखता-
अक्सर आ जाती मेरे
दिल के बरामदे में
ये हवा सी तेरी यादें
बन्द थे भीतर
आने के रास्ते मगर
वो कहाँ से आ गई
आकर फिर सुकून से इकट्ठा
किया सुकून ले गई.....!-