अर्पित मिसरा  
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Joined 21 February 2018


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न जाने तू क्या कर गई
चेहरे पे उदासी घर कर गई

७ सितंबर २०२३

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मै स्वयं से स्वयं का विस्थापन झेल रहा

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हर दफा किसी का
लौट आना सुखद नही होता
कभी - कभी
किसी का लौट आना
बहुत दुःख से भरा होता है
तब और
जब वह अजनबी बन के लौटे
और आपको इसका
एहसास भी कराता रहे …

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उसका जी उकता गया मुझसे मेरी बातों से
सो वो फोन पर किसी और को चट रही है



५ फर २०२३

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तुम तो उस
उड़न की "र" सरीखी हो
जो भले ही उड़ के
जा लगी है... बैठी है
किसी और के संग
पर पढ़ी तो जाएगी.. हमेशा
मेरे ही संग... मेरे ही संग

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दुःख
इस बात का नहीं है
कि मै
मर जाऊँगा ...
दुःख इस बात का है
कि मै
बेचैन मर जाऊँगा ...

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तेरे सिवा न कोई साथ
दयादृष्टि रखना मेरे नाथ

मोह के है मगरमच्छ दबाए
मन गजराज सा फंसता जाए
दौड़ो - दौड़ो बचाओ नाथ
तेरे सिवा ना कोई साथ

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वो जो आता नहीं अब मेरे रूबरू
उसको सपनों में घेर लूं क्या
जिससे की है बेपनाह मुहब्बत
अब उसी से नजरें फेर लूं क्या

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जो मेरी नज़र से कोई झांके मुझमें
यक़ीनन खो जाएगा वो जाके मुझमें..

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मै आँखो से ढरकूं वो आँसू बहाओ
जमीं पर गिराओ ,जमी पर गिराओ
मै तब भी तुम्ही में ही बाकी रहूंगा
नज़र में बचूंगा मै दिल में बसुंगा
छा जाए गम की या दर्दों की बदली
भले ही वो हो जाए तस्वीर धुंधली
निहारूंगा मै उसको सांझ सवेरे
उसे साथ लेकर या फिर अकेले
रोपता है कोई इक नया पौधा मुझमें
न जाने कहां से किधर से वो मुझमें
बचाओ न अब मेरे ख्वाबों की बस्ती
उड़ाओ, उड़ाओ ऐ जिंदगी मेरी हस्ती...

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