सबको समेटते समेटते यूं
बिखर गई हूं।
अब कुछ बचा ही नहीं
मुझमें।।।-
अँधेरे में तो यहाँ अपने भी साथ छोड़ देते हैं ,
निराशा छोड़ अपनी आशाओं को तूफ़ानों में भी दीप जलाए रखना ,
दिल को रोशन करके रखना ,
दुनिया अंधेरा जल्द कर देती है , माना चिरागों में रोशनी होती है खो जाएँगे धुंध अंधेरे के , अंधेरे पथ में भी उम्मीद की रोशनी जलाकर रखना , दिल को रोशन करके रखना ,
जीवन संघर्ष है , यहाँ ठोकरे बहुत मिलेगी , मंजिले इम्तिहान भी लेगी , मुश्किलें से घबराता नहीं , परिस्थिति कैसी भी हो अपनी हिम्मत बनाए रखना ,
दिल को रोशन करके रखना ,
कभी दर्द हमसफ़र बन जाए तो ,
हो सके उसे नज़र अंदाज करते रहना ,
थाम लेना खुशियों का दामन ,
अपने चहरे पर हमेशा मुस्कान बनाए रखना ,
दिल को रोशन करके रखना .....-
आशाओं और उम्मीदों से तू संभल जा ,खुद की सुन और सुकून से जीये जा ,
ए दिल तू सुधर जा .....
अब न फिर किसी से दिल लगा ,बड़े बेदर्द हैं ज़माने के लोग , अब किसी की बातों में न आ ,
दिल सुधर जा .....
जहाँ हो कद्र तेरे एहसासों की , तू उधर जा , तुझे तो पता है संग दिल एहसासों का , न हुआ कर हर किसी का , बस एक ही काफ़ी है , उसकी कद्र किए जा ,
दिल सुधर जा .....
अगर दर्द तुझे होता है तो आँखों से आंसू मेरे बहते हैं , कितना दुख तू और सहेगा , अब तो तू सुधर जा , हर शख्स अपना कहने वाला अपना नहीं होता , अपना वो होता है जो प्यार की इज्ज़त करता , मेरी ये दिल की धड़कन जिसके लिए धड़कती है मालूम है तुझे , उस संग दिल की तू कद्र किए जा , उसे दुआएं दिए जा ,
दिल सुधर जा .....
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आशाओं का नया विहान,
भावपूर्ण नव मंगल गान,
शस्य श्यामला हरित भूमि,
अमिट छाप भारत महान।।
अथाह सिंधु विस्तृत प्रमाण,
हिमराज शुभ्र् दैदीप्यमान,
मंगलमय जननी मधुर मान,
अमिट छाप भारत महान।।
पुरुषार्थ प्रेम अतुलित निशान,
शौर्य शलाका दृश्यमान,
स्वतंत्र वीरता स्वाभिमान,
अमिट छाप भारत महान।।
सिद्धार्थ मिश्र-
नया साल आएगा, यह साल जाएगा।
यह साल मुझको तो 'बड़ा याद' आएगा।
इस साल लोगों की आशाओं का समर्थन किया गया।
इस साल बी.जे.पी का काम हमारे दिलों को छू गया।
अलविदा २०१ ९-
सारी आशाएं निराशाओं में बदल जातीं हैं
उपवन से जब कलियां तोड़ ली जाती हैं..!!-
चल समय के साथ चल
ले हाथों को हाथ चल...
जीवन है ये चलने का नाम
बिखरे हैं जहाँ अपने-२ राम
मौन अज्ञात वास में खोज रहा
पावन निर्मल उर के धाम
टूट टूटकर क्यों हो लजा रहे
चूस चूस उठे हैं कितने आम
मिलना भी है जिसका दुर्लभ
फिके हैं फिर भी ऊँचे दाम
उलझी हुई है रात चल
भूली बिसरी हर बात चल....
आशाओं में देह भटक रहा
चमगादडो़ सा उलटा लटक रहा
उदर छटपटा रहा दाने को
मानवता दूध मलाई गटक रहा
रिश्तों को बांधे वो डोर कहाँ
एक पकडूं तो एक छटक रहा
बच्चों सी अबूझ किलकारी मारे
मूढ़ता है अँखियों से मटक रहा!
जैसे भी हो अपने हालात चल
उम्मीदों को ले सवालात चल....
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सूर्य उत्तरायण हो रहा है
मनुज आशाओं को ढो रहा है....
झड़ रहे हैं ...सूखे पल्लव ही सारे
नव कोंपल.....की आस में,
कलियां भी मुस्कुरा.....उठी हैं
एक दूजे के......परिहास में!
देह की हरीतिमा पियरा गई
देखके मन हर्ष में खो रहा है.....
भोर में पंछियों का कोलाहल
दिन में उजड़ रहे हैं उनके घर,
पशु से हिंसक मानव हुआ है
ढूंढ रहा है काटने लोगों के सर!
इतना परिवर्तन भी क्यों जगत में
जो खुद ही खुद में रो रहा है....
फैशन के मखमली दौर में
परम्पराओं को जगाए रखना,
धन ही प्रिये सब कुछ नही है
आत्मा को भी जलाये रखना!
बूढी़ अँखियों से झुर्रियों तक
कई उम्मीदों को धो रहा है...-
ममत्व,
कुछ आशाओं की बोझ लिए फिर रही थीं
एक थकी हारी
मन शांत
दिल खुश
चेहरे पे दमक
फीकी से फीकी
नजरों से ओझल
होती जा रही थीं
अपना अस्तित्व खोते हुए ।।-
मैंने कब कहा उनको खुश न रहा करो
वो खुश हैं तो हो लें ये तोअच्छी बात है
उदास मन लिये इधर उधर क्यों फिरती हो
गम को बांटो खुश रहो ये तो अच्छी बात है
आशाओं को आधार बना कर जीवन जियो
सपनो की उड़ान उड़ो ये तो अच्छी बात है
तेज ठहाकों से मन हर्षाओ सबसे मिलो जुलो
अरमानो की सेज सजाओ ये तोअच्छी बात है
जीने की कोई वाजिब वजह ढूंढ लो "मीता"
मुकम्मल आसमां तलाशो ये तोअच्छी बात है-