शायर गुमनाम   (Rp Singh)
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Joined 17 February 2021


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Joined 17 February 2021

प्यार ऐसा कोई शब्द नहीं मेरे शब्दकोश में
बस रहता हूँ तुम्हारे ख़ालीपन के आगोश में

ढूंढता हूँ तुम्हें हर खिलखिलाती परछाई में
नहीं मिलतीं तुम तब भी कहीं आशनाई में

सुनो , मैं तुम्हें ढूंढते ढूंढते पत्थर हो गया हूँ
नहीं पता कि अपने में या तुम में खो गया हूँ

भूल जाता हूँ जानी पहचानी हर चीज को मैं
पागल था पहले इश्क़ में अब बद्दतर हो गया हूँ

ख़ैर......अब तो लिखना भी छोड़ दिया है मैंनें
फिर भी लगता है ऐसा जाने कबका सो गया हूँ

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त्रिवेणी से मणिकर्णिका आ गया हूँ
रोकलो कहीं गंगासागर न हो जाऊं

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और उस हादसे के बाद नहीं दिखा वो
वो जो मैं था , मुझे फ़िर नहीं मिला वो

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मेरी झुकी हुई नज़रें औऱ तुम्हारा सर उठाना
क्या रुसवाई क्या बेवफ़ाई जानता है जमाना

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जो ठहरा तो ठहर जाऊँगा
गुज़रने दे अभी गुज़र जाऊँगा

प्यासा हूँ मुझे भटकने दे तू
लबों को छूकर मुकर जाऊँगा

सुलाना जुल्फों तले लौटूं जब
पाकर तुझे मैं सुधर जाऊँगा

अभी उमर है देखने दे सपन
वादा है वापस मैं घर आऊंगा

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मायूसी मन का वहम भी हो सकती है
ये दुनियां है तुम्हारे साथ भी सकती है

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पर ये छोड़ो अब इन कागजो का क्या करूँ मैं ये बता दो न
बता दो इन्हें समेत दूँ या बिखरा पड़े रहने दूँ
कभी कभी मन करता है कि समेटकर जला दूँ इन्हें शायद जल जाएं तुम्हारी यादें भी
पर सोचता हूँ कि मैं तो जला भी दूँगा इन कागज़ के टुकड़ों को
पर तुम ....तुम कैसे समेट पाओगी इन बिखरी हुई ज़ुल्फो को
तुम तो जला भी नहीं सकतीं ज़ुल्फो को
औऱ मैं कभी नहीं चाहूंगा तुम जलाओ इनको
बस इसीलिये रखा है संभाल कर इन कागज के टुकड़ों को ताकि जब जब तुम बिखेरोगी अपनी जुल्फ़ें ये कागज अपने आप बिखर जायेंगें मेरे आस पास
तुम सलामत रहोगी अपनी ज़ुल्फो के साथ मेरी यादों में
शायद मैं भी कहीं भटकता रहूंगा तुम्हारी किसी लट में तुम्हें छूने की फ़िराक में

तुम्हारे लबों की चाहत नहीं है पर हाँ तुम्हारा स्पर्श बहुत करीब है मेरे ह्रदय के,
शायद वो आखिरी कौने तक तुम्हारी छुअन की पहुंच है जहां सिर्फ मैं रहा करता हूँ
परन्तु किसी दिन ये कागज सड़ जाएंगें जुल्फ़ें बिखरना छोड़ देंगीं

तब भी मेरे एक हिस्से में रहोगी तुम
औऱ तुम रखना मुझे छुपाकर कहीं....

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मैं ख़ुद से रिश्ता तोड़ रहा हूँ
धीरे धीरे सबको छोड़ रहा हूँ

बीते गुज़रे लम्हे अच्छे , बुरे
जिंदगी के काग़ज़ मोड़ रहा हूँ

तुम कहते हो अब दूर हो रहे
अपने बिखरे हिस्से जोड़ रहा हूँ

क्या पता शायद कोई न आये
अपनी कब्र का गड्डा खोद रहा हूँ

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तुम्हें लिखना भी छोड़ दिया है

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मुझमें कुछ भी बाक़ी नहीं है
अफ़सोस रब भी राज़ी नहीं है

तेरे दर पर दम तोड़ा है मैनें
फ़िर भी हिस्से माफ़ी नहीं है

कहने लगा अभी तो जीना है
जान मर जाना काफ़ी नहीं है

ज़हर तेरे सुर्ख़ लबों के प्याले
तेरे जैसा कोई साक़ी नहीं है

चाहें तो हम जीलें पर जिंदगी
इश्क़ की जाना बाज़ी नहीं है

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