इक बार को नजर उठा कर देखो ,
सामने वाला किस नजर से देखता है तुम्हें !-
हवा बहा रखी है आदर जैसे,
सड़क बिछा रखी है चादर जैसे।
ज़िंदा रखी हुई है, पेटों में यूँ,
शमा जला रखी है कादर जैसे।-
ऊँचा उठने के लिए पँखो की
जरूरत पक्षियों को पड़ती है,
इंसान तो जितना नीचे ज़ुकता है,
उतना अवश्य ही ऊंचा उठता है...-
हर कोई मुझे अपने हिसाब से निहारता हैं, हर कोई मुझे अपने ज्ञान के अनुसार आँकता हैं, भाँपता हैं।
हर कोई मुझे ख़ुद सा मापता हैं। मैं तो वहीं हूँ 'अभि' जो कल था, मेरा ख़ुदा इस बात को जानता है।
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✍️✨मेरी नन्ही परी✨✍️ (कल्पना पर आधारित)
क्या यही है मेरी नन्ही परी,
जो अब करती है प्यारी बातें। ...✍️✨(१.१)
रह मेरे इर्दगिर्द कुछ ज्यादा ही
कर शब्दों की बरसातें। ...✍️✨(१.२)
सुबह सुबह उठ, सुबह शाम यह
पद प्रक्षालन मेरी करती है। ...✍️✨(२.१)
जो भी मिली तालीम उससे यह
भूल से भी न कभी मुकरती है। ...✍️✨(२.२)
अब तो यह यूँ बदल गई जैसे
परी ही हो कोई सामने में। ...✍️✨(३.१)
परी तो थी ये बचपन से पर
सज धज कर यूँ न आयने में। ...✍️✨(३.२)
इन नयनों को करेगी रौशन ये
दे पानी प्यास बुझाने को। ...✍️✨(४.१)
उम्मीद है मेरी यही बहुत न
शब्द है और सुझाने को। ...✍️✨(४.२)-
बातों - बातों में चेहरा म्यान रह गया
और तेज़ ज़ुबान तलवार बन गयी !!-
आदर कविताओं का करती हूं,
रोज नए विषय तलाश करती हूं,
भावनाएं उनमें भरती हूं,
पाठकों के मन में उतरती हूं।
रश्मि सहाय
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✨पत्थर एवं प्यार✨
वैसे तो पत्थर केवल पत्थर ही नहीं होता,
पत्थरों का भी आदर होता है,
सत्कार होता है।✨
दिख जाती हैं कभी निर्जीवों में खूबियाँ
कि प्यार उनसे बारम्बार होता है
कई बार होता है।✨
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तुम्हें इतना....... वो जो सहज़ करती है,
अंदर से कितनी वो... असहज़ रहती है।-