'होली उत्सव'
होली आयी रे कन्हाई
रंग छलके सुना दे ज़रा बाँसुरी
छुटे ना रंग ऐसी रंग दे चुनरिया
धोबनिया धोये चाहे सारी उमरिया
मोहे भाये ना हरजाई
रंग हलके सुना दे ज़रा बाँसुरी-
पूरी अवध_ए_नगरी रंगीन और उजाले में है।
बस इस दिल में ही बेइंतेहा अंधेरा है।।-
जाम में वो नशा कहां जो उनकी आंखों में है।
एक शाम नज़रों के नशा में भी नशीला कर दो।।
शाम के रंग कुछ बेरंग नज़र आ रहे है।
अपनी इन नज़रों वार से एक अवध_ए_शाम गुलाबी कर दो।।-
इक शाम गुजार के तो देखो मेरे शहर में,
यकीनन पूरे शहर से ही मोहब्बत हो जायेगी...-
आज ही के दिन श्री राम
लौटकर आए थे अवध की ओर।
आप कब लौटेंगे अपने अवध की ओर? स्वयं राम पलकें बिछाए बैठे हैं आपके लिए।-
विकास में तत्पर लेकिन ,
अपने संस्कारों में रमा है लखनऊ ।
पुराने रीति रिवाजों वाला लेकिन
अब तक जवां है लखनऊ ।
जो महसूस करते हैं ज़िन्दगी की थकान खुद में
उनके लिए बेजोड़ दावा है लखनऊ ।
अन्जान शहर अंजान ही रहते हैं
आकर देखें अपना अपना-सा है लखनऊ ।
अदब और तहज़ीब की अपनी पहचान लिए
औरों से बिल्कुल जुदा- जुदा है लखनऊ ।
रूठे को मना ले , गम को भी खुशी कर दे
ऐसी आब-ओ-हवा है लखनऊ ।
मुस्कुराइये कि आप लखनऊ में हैं
ऐसा गुलिस्तां है लखनऊ ।
दिल बस जाए आपका यहीं पर
खुद में ऐसी अदा है लखनऊ ।
आकर तो देखो एक बार लखनऊ में
कह न उठो "वाह्ह , क्या खुदा है लखनऊ " ।-
मेरा किसी से न मेल प्रिये
दिन रैन तुम्हें बस तकते है।
महीनों बाद देख msg प्रिये
दिल धक धक मेरे करते है।
मन से भी तुम fast प्रिये
जरा रुको, धीरे हम चलते है।
कभी आकर भी तो मिलो प्रिये
यहीं अवध में तो हम रहते है।-
अवध का वासी हूँ मैं चलता हूँ शान से
जन्मों से नाता मेरा जय श्रीराम से ।जन्मों ....
घाटों में घाट मैं सरयू जी का घाट हूँ।
जिस डग चलें प्रभु जी वही मैं बाट हूँ ।
राम धुन आती यहाँ ,हर एक मकान से । जन्मों...
चरणों मे लिपटा हुआ उनकी मैं धूल हूँ ।
प्रभु मन भाए जो वही मैं फूल हूँ ।
दुष्ट का संहारक बन निकलता हूँ बाण से । जन्मों....
एक शब्द एक धरम मेरा स्वभाव है।
रामजी बसे हैं जहाँ वही मेरा गाँव है।
होती रोज बातें मेरी बली हनुमान से। जन्मों से.....-